नई दिल्ली: कानपुर में 2 जुलाई की रात 8 पुलिसकर्मियों की मुठभेड़ में हत्या और उसके बाद गैंगस्टर विकास दुबे समेत 6 लोगों को पुलिस की तरफ से मार गिराए जाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट कल सुनवाई करेगा. कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में मामले की जांच CBI, NIA या SIT को सौंपने की मांग की गई है. इन याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि कोर्ट जांच की निगरानी करे.
इस पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट में अब तक 6 याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं. वकील घनश्याम उपाध्याय, अनूप प्रकाश अवस्थी, विशाल तिवारी और अटल बिहारी दुबे जैसे याचिकाकर्ताओं के अलावा एनजीओ पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टी (PUCL) और विकास दुबे के लिए मुखबिरी करने के आरोपी सब इंस्पेक्टर के के शर्मा ने भी याचिका दाखिल की है. वकीलों और एनजीओ की तरफ से दाखिल याचिका में मामले में यूपी पुलिस की भूमिका को संदिग्ध बताया गया है. कहा गया है कि पुलिस, अपराधियों और नेताओं के गठजोड़ की पूरी जांच होनी जरूरी है. जबकि, सब इंस्पेक्टर के के शर्मा ने पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद छह लोगों को मुठभेड़ में मार गिराए जाने को आधार बनाते हुए आशंका जताई है कि बदला लेने पर उतारू यूपी पुलिस उन्हें भी मार सकती है. इसलिए, कोर्ट उन्हें सुरक्षा दे.
बुधवार को होने वाली सुनवाई की लिस्ट में हालांकि घनश्याम उपाध्याय, अनूप प्रकाश अवस्थी और विशाल तिवारी की याचिकाएं ही नजर आ रही हैं. लेकिन उम्मीद जताई जा रही है कि कोर्ट सभी मामलों पर एक साथ सुनवाई कर लेगा. इन याचिकाओं में कहा गया है कि 20 साल से भी ज्यादा समय तक दर्जनों वारदात करने वाला विकास दुबे आखिर कैसे कानून की पकड़ से बचा रहा? पुलिस तंत्र में और राजनीति में कौन से लोग उसे इतने सालों तक बचाते रहे? अपने गांव में छापा मारने आ रही पुलिस की टीम की जानकारी उसे पहले कैसे मिल गई ? 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद यूपी पुलिस ने अपराधियों को गिरफ्तार कर मामला हल करने की बजाय विकास दुबे का मकान गिराने से लेकर उसे और उसके सभी सहयोगियों को मार गिराने का काम क्यों किया? क्या अब तक विकास दुबे को बचाते रहने वालों का नाम सामने आ जाने की आशंका से ऐसा किया गया?
याचिकाओं के मुताबिक अगर जांच यूपी पुलिस ही करती रही तो इसकी पूरी सच्चाई कभी सामने नहीं आएगी. इसलिए जांच सीबीआई, एनआईए या विशेष जांच दल (SIT) से करवाई जाए. सभी याचिकाओं में यह कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट खुद जांच की निगरानी करे.
हालांकि, इस बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरे मामले की जांच के लिए हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस शशिकांत अग्रवाल की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन कर दिया है. आयोग को जांच पूरी करने के लिए 2 महीने का वक्त दिया गया है. ऐसे में यह देखना होगा कि क्या सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार की तरफ से आयोग का गठन किए जाने से संतुष्ट होता है, या अपनी तरफ से कोई आदेश पारित करता है? या फिर याचिकाकर्ताओं को इलाहाबाद हाई कोर्ट में जाकर अपनी बात रखने के लिए कहता है?
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