नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज संविधान के 97वें संशोधन के एक हिस्से को निरस्त कर दिया. इसके तहत संविधान में पार्ट IX B जोड़ा गया था. संविधान का यह हिस्सा सहकारी संस्थाओं के पदाधिकारियों के चुनाव से जुड़ा है. 2013 में गुजरात हाई कोर्ट ने फैसला दिया था कि यह हिस्सा जोड़ने के लिए जिस तरह से संविधान संशोधन किया गया, वह तकनीकी रूप से गलत था. राज्य के अधिकार क्षेत्र में आने वाले विषय पर संशोधन के लिए विधानसभाओं का अनुमोदन भी ज़रूरी होता है. आज सुप्रीम कोर्ट ने भी उसी फैसले को बरकरार रखा है.


2011 किया गया था संशोधन


2011 में किये गए 97वें संशोधन के ज़रिए संविधान में 3 बातें जोड़ी गई थीं. पहला, अनुच्छेद 19 1(C) के तहत सहकारी संस्था के गठन को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया था. दूसरा, अनुच्छेद 43 B के तहत नीति निदेशक तत्वों में इस बात को जोड़ा गया था कि राज्य यह देखें कि सहकारी संस्थाओं का नियंत्रण और संचालन लोकतांत्रिक तरीके से हो.


तीसरा पार्ट था IX B, जिसके तहत सहकारी संस्थाओं में तय समय में चुनाव, उसमें अनुसूचित जाति/जनजाति और महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने जैसे नियम तय किए गए थे. गुजरात हाई कोर्ट ने इसी हिस्से को निरस्त किया था. आज सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि केंद्र-राज्य संबंध को प्रभावित करने वाला संशोधन सिर्फ संसद के दोनों सदनों में साधारण बहुमत के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए था.


बहुमत के आधार पर हुआ फैसला


सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की बेंच ने बहुमत के आधार पर यह फैसला दिया है. बेंच के अध्यक्ष जस्टिस रोहिंटन नरीमन और बी आर गवई ने गुजरात हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए सिर्फ पार्ट IX B को खारिज किया है. जबकि जस्टिस के एम जोसफ ने अल्पमत का फैसला देते हुए पूरे 97वें संविधान संशोधन को ही गलत करार दिया है.


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