नई दिल्ली: लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा है. कुछ उद्योगों की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया है, “आवश्यक सेवा से जुड़े उद्योगों को लॉकडाउन में काम करने की इजाजत दी गई है. लेकिन कई कर्मचारी केंद्र सरकार की अधिसूचना का फायदा उठाकर काम पर नहीं आ रहे हैं. पहले से संकट का सामना कर रहे उद्योगों को उन्हें पूरा वेतन देने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए.“


राजस्थान में जिंक खनन से जुड़े निर्माण कार्य को करने वाली कंपनी टेक्नोमिन कंस्ट्रक्शन ने केंद्र की अधिसूचना को चुनौती देते हुए इसे भेदभाव भरा बताया है. कंपनी ने कहा है जो मजदूर ड्यूटी कर रहे हैं और जो काम पर नहीं आ रहे हैं, उन्हें एक बराबर दर्जा कैसे दिया जा सकता है? ऐसा करना काम करने वाले मजदूरों के साथ भेदभाव होगा.“


कंपनी की तरफ से यह दलील रखी गई कि उद्योग काम बंद हो जाने के चलते पहले ही संकट का सामना कर रहे हैं. ऐसे में जिन उद्योगों ने विशेष अनुमति के बाद काम करना शुरू कर दिया है. उन्हें सभी कर्मचारियों का वेतन देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. काम पर न आने वालों के वेतन में कटौती का आदेश बॉम्बे हाई कोर्ट ने दिया है. उसे पूरे देश में लागू करना चाहिए.“


टेक्नोमिन कंस्ट्रक्शन के लिए पेश वकील ने दलील दी, “जो कर्मचारी काम कर रहे हैं, वह पूरे वेतन के हकदार हैं. लेकिन जो काम नहीं कर रहे, कंपनी को उनका 30 फ़ीसदी वेतन देने को ही कहा जाना चाहिए. अगर सरकार चाहे तो बाकी 70 फीसदी कर्मचारी बीमा निगम या पीएम केयर्स फंड के पैसों से दे.“ ऐसे ही याचिका कुछ और उद्योगों की तरफ से भी दाखिल की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें एक साथ जोड़ते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर दिया.


छात्रों से फीस न लेने पर सुनवाई नहीं


लॉकडाउन में प्राइवेट कालेज के छात्रों को फ़ीस देने में छूट दिलाने की मांग पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया. कोर्ट ने कहा- अगर फ़ीस नहीं मिलेगी तो कालेज कैसे चलेगें? अपने स्टाफ़ को वेतन कैसे देंगे?” इस पर याचिकाकर्ता ने दोनों बयों में संतुलन बनाने की मांग की. लेकिन कोर्ट ने कहा कि बेहतर हो यह बात उस यूनिवर्सिटी के सामने रखी जाए जिसके तहत संबंधित कॉलेज आता है.