नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है. इस मामले में अगली सुनवाई 22 जनवरी को होगी. सुप्रीम कोर्ट में सीएए को लेकर 59 याचिकाएं दाखिल की गई थीं. याचिकाओं पर चीफ जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्य कांत की बेंच ने सुनवाई की है.
किन बड़े नेताओं ने दायर की याचिका
याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस के नेता जयराम रमेश, AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी, TMC की महुआ मोइत्रा, RJD के मनोज झा, जमीयत उलेमा ए हिंद, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग शामिल हैं. ज्यादातर याचिकाओं में धर्म के आधार पर शरणार्थियों को नागरिकता देने वाले कानून को संविधान के खिलाफ बताया गया है.
यह कानून धर्मनिरपेक्षतावाद का उल्लंघन- मनोज झा
RJD के मनोज झा ने आज दायर की गई अपनी याचिका में कहा है कि यह कानून धर्मनिरपेक्षतावाद का उल्लंघन है क्योंकि इसमें धार्मिक समूहों के खिलाफ ‘‘भेदभाव की दुर्भावना’’ के साथ नागरिकता मुहैया कराने में कुछ लोगों को बाहर रखा गया है. मनोज झा ने वकील फौजिया शकील के जरिए दायर याचिका में कहा, ‘‘भारतीय नागरिकता का चरित्र धर्मनिरपेक्ष है. धर्म के आधार पर नागरिकता देते हुए लोगों के बीच भेदभाव करना संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है. यह संविधान के मूल सिद्धांत और संवैधानिक नैतिकता की अवधारणा की घोर उपेक्षा है.’’
कानून संविधान के बुनियादी मूल्यों का उल्लंघन करता है- जमीयत उलेमा-ए-हिंद
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की है. उसने कहा कि यह कानून संविधान के बुनियादी मूल्यों का उल्लंघन करता है और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है. याचिका में कहा गया है कि नागरिकता संशोधन कानून भारत के पड़ोसी देशों से हिंदू, बौद्ध, ईसाई, पारसी, सिख, जैन जैसे समुदाय के सताए हुए लोगों को नागरिकता देने की बात करता है. लेकिन इसमें जानबूझकर मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है. इस तरह का भेदभाव करने की भारत का संविधान इजाजत नहीं देता. सुप्रीम कोर्ट तुरंत इस कानून के अमल पर रोक लगा दे.
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