राज्य सभा राज्यों की बजाय पार्टियों की प्रतिनिधि सभा बनती जा रही है. यह दलील देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. याचिकाकर्ता का कहना था कि विधायकों को पार्टी की इच्छा के मुताबिक मतदान के लिए बाध्य करना सही नहीं है.


चुनाव सुधार के मसले पर कई अहम याचिकाएं दाखिल कर चुके एनजीओ लोक प्रहरी की तरफ से उसके सचिव एस एन शुक्ला ने दलीलें रखीं. उन्होंने राज्य सभा चुनाव के बड़ी पार्टियों का अखाड़ा बनते जाने पर चिंता जताई. उन्होंने कहा, संविधान का अनुच्छेद 80 विधायकों को मतदान के ज़रिए राज्य का प्रतिनिधि चुनने का हक देता है. इस प्रक्रिया में पार्टी की कोई भूमिका नहीं है. लेकिन एक नियम बना कर यह तय कर दिया गया है कि विधायक वोट डालने से पहले पार्टी के अधिकृत प्रतिनिधि को उसे दिखाएगा. अगर वह ऐसा नहीं करता तो इसका वोट अमान्य करार दिया जाएगा.


मामले की अगली सुनवाई जनवरी में होने की उम्मीद


याचिकाकर्ता की दलील थी कि इस तरह विधायक को पार्टी की इच्छा के मुताबिक वोट देने के लिए बाध्य करना बड़ी पार्टियों को मजबूत स्थिति में खड़ा करता है. उन्होंने याचिका में राज्य सभा चुनाव लड़ने के लिए 10 प्रस्तावक के नियम को भी चुनौती दी है. उन्होंने कहा है कि इस नियम के चलते छोटी पार्टियों और निर्दलीयों के लिए चुनाव में उतर पाना सम्भव नहीं हो पाता.


याचिका में सवाल उठाया गया है कि पूरे राज्य का प्रनिधित्व करने के लिए चुने जाने वाले सांसद के चुनाव में पार्टियों की यह बड़ी भूमिका उच्च सदन के गठन के पीछे की मूल भावना के खिलाफ है. आज चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने थोड़ी देर की जिरह के बाद याचिका पर नोटिस जारी कर दिया. याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग के साथ ही यूपी सरकार को भी पक्ष बनाया है. मामले की अगली सुनवाई जनवरी में होने की उम्मीद है.


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