SC Justice DY Chandrachud NLU Convocation Speech: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) ने शनिवार (15 अक्टूबर) को कहा कि कानूनी पेशे (Law Profession) में नारीवादी विचारों (Feminist Views) को समाहित करना चाहिए. उन्होंने कहा कि महिलाओं (Women) की क्षमता को बदलाव के दौर में बदलना भारतीय समाज (Indian Society) के लिए चुनौती है. दिल्ली की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (NLU) के दीक्षांत समारोह में बोलते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने युवा वकीलों को सलाह दी कि वे कानून में सामाजिक और लिंग संहिताओं में पहले से मौजूद अभिधारणाओं से परे सोचें.


उन्होंने कहा, ''कानून पहले से मौजूद सामाजिक और लिंग संहिताओं में काम करता है, जो अक्सर लिंग  पहचान के निर्माण में योगदान करता है, कानूनी पेशेवर के रूप में आपको विखंडित तकीनीकी का इस्तेमाल मौजूदा कानून दर्शन करने और उस सोच का खुलासा करने के लिए करना चाहिए जो कानून के उप-स्तर का निर्माण करती है. मैं आपको विशेष रूप से सलाह दूंगा कि आप कानून से निपटने के लिए नारीवादी सोच को उसमें समाहित करें.'' न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ 9 नवंबर को भारत के 50वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में पदभार संभालेंगे. प्रधान न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल दो वर्ष का होगा.


छात्राओं को लेकर यह बोले जस्टिस चंद्रचूड़


स्वर्ण पदक हासिल करने वाली छात्राओं की तादाद की तारीफ करते हुए चंद्रचूड़ ने कहा कि यह सिर्फ उस समय का संकेतक है जिसमें हम रह रहे हैं और जो आने वाला है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने छात्राओं की सफलता का श्रेय भारतीय समाज में उनके सामने आने वाली चुनौतियों को दिया और कहा कि यह आत्मनिरीक्षण और विचार करने का समय है कि कैसे हमारे समाज में महिलाओं की क्षमता को उल्लेखनीय परिवर्तन में बदला जा सकता है. 


न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अपने संबोधन में कहा, ''मुझे लगता है कि हमारे समाज में जिन चुनौतियों का सामना करने के महिलाएं गतिशीलता की लालसा करती है वह जबरदस्त सफलता के बहुत बड़े पैमाने पर प्रतिबिंबित होती है जो युवा महिलाएं हासिल कर रही हैं. हमारे लिए यह आत्मनिरीक्षण करने और विचार करने का समय है कि कैसे हम ऐसी स्तिथियों का निर्माण करें जैसा कि वे उन्हें हासिल होने वाले पदकों के रूप में व्यक्त करती हैं, उसे हमारे समाज में वास्तविक समय के परिवर्तन में बदला जा सके. मुझे लगता है कि भारतीय समाज में इस क्षमता को परिवर्तन में बदलने के लिए यह हमारे समय की एक बड़ी चुनौती बनने जा रही है.''


न्यायमूर्ति ने बताया ऐसे मिला उन्हें नारीवादी परिप्रेक्ष्य


बॉम्बे हाई कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में अपने अनुभव को याद करते हुए चंद्रचूड़ ने कहा कि वह न्यायमूर्ति रंजना पी देसाई के साथ एक आपराधिक रोस्टर में बैठते थे और विभिन्न आपराधिक अपीलों को सुनते थे. उन्होंने कहा, ''शुरू में मैंने उन मामलों को देखा जहां महिलाओं को अक्सर सबसे बुरे अपराधों और उल्लंघनों के अधीन किया जाता था लेकिन लिंग की वास्तविकताओं के लिए ज्यादा विविध अनुभव रखने वाली एक सहकर्मी के साथ बैठकर मुझे आवश्यक नारीवादी परिप्रेक्ष्य मिला.'' उन्होंने कहा, "बेशक, मेरा मानना ​​है कि हम सभी को, जिसमें मैं भी शामिल हूं, कानून को समझने और सामाजिक अनुभवों को लागू करने के संदर्भ में बहुत कुछ सीखना है.''


न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि एक युवा छात्र के रूप में क्रिमिनोलॉजी को लेकर उनकी दृष्टि में काफी बदलाव आया जब उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर में प्रोफेसर लोतिका सरकार की कक्षाओं में भाग लिया, जो क्रिमिनोलॉजी को नारीवादी दृष्टिकोण के साथ पढ़ाती थीं.


महिला वकीलों को लेकर यह बोले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़


महिला वकीलों की चुनौतियों की बात करते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ''महिला वकीलों को विशेष रूप से पुरुष-प्रधान पेशे में काम करना चुनौतीपूर्ण लग सकता है जो अक्सर उनकी चिंताओं और विचारों को समायोजित करने में विफल रहता है.'' हालांकि, उन्होंने कहा कि समय बदल रहा है. उन्होंने युवा कानून स्नातकों से नैतिकता से जुड़े रहने और उनके खुद के अस्तित्व की आत्मकेंद्रित दृष्टि के परे देखने के लिए कहा.


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