नई दिल्ली:  मदर टेरेसा की तरफ से स्थापित मिशनरीज ऑफ चैरिटी के आश्रम में बच्चों को बेचे जाने की घटना सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार से जवाब मांगा है. राष्ट्रीय बाल संरक्षण अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने कोर्ट में याचिका दायर कर बताया है कि इस घटना पर झारखंड सरकार का रवैया लापरवाही भरा है. उसके अधिकारी आयोग को इसकी जांच में सहयोग नहीं दे रहे हैं.


NCPCR ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि 2018 में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की 2 सिस्टर बच्चों को बेचने के मामले में गिरफ्तार हुई थी. आयोग ने इससे जुड़ी खबरों पर संज्ञान लिया था. दूसरी मीडिया रिपोर्ट से भी खुलासा हुआ कि मिशनरीज ऑफ चैरिटी से बच्चों को बेचे जाने का धंधा काफी समय से चल रहा है. आयोग जानना चाहता है कि इस धंधे के तार कहां तक जुड़े हैं? जो बच्चे मिशनरीज ऑफ चैरिटी से गायब हुए, वो कहां है? लेकिन झारखंड सरकार ने आयोग की जांच में बार-बार बाधा डाली.


गौरतलब है कि 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' के कई आश्रमों में 2015 से 2018 के बीच 450 गर्भवती महिलाएं भर्ती हुई थीं, लेकिन वहां सिर्फ 170 नवजात शिशुओं का रिकॉर्ड मिला. बाकी 280 शिशुओं के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. पुलिस की तरफ से की गई शुरुआती जांच में 2 ननों और संस्था की संचालक की तरफ से 4 नवजात बच्चों को बेचे जाने की पुष्टि हुई थी.


बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत मानव तस्करी से बचाया जाना लोगों का मौलिक अधिकार है. इसका पालन करना सरकार की जिम्मेदारी है. NCPCR पूरे देश में बच्चों के अधिकार पर काम करने के लिए गठित वैधानिक संस्था है, लेकिन उसे झारखंड सरकार ने काम नहीं करने दिया ना खुद घटना के सही तरीके से जांच की, ना आयोग को उसकी तह तक पहुंचने दिया. याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट अपनी निगरानी में मामले की जांच करवाए.


याचिका में दूसरे राज्यों पर भी मामले को टालने का आरोप लगाया गया है. आयोग ने कहा है कि उसने प. बंगाल, असम, बिहार, अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और केरल से मिशनरीज ऑफ चैरिटी की गतिविधियों पर जानकारी मांगी थी. लेकिन उनका जवाब संतोषजनक नहीं रहा. राज्य सरकारें कमजोर तबके से आने वाले छोटे बच्चों की स्थिति को लेकर गंभीर नजर नहीं आतीं इसलिए, सुप्रीम कोर्ट खुद मामले को अपने हाथ में ले और उचित तरीके से इसकी जांच करवाए.


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