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ट्रांसजेंडर शिक्षिका को नौकरी से हटाया तो पहुंची सुप्रीम कोर्ट, यूपी, गुजरात, केंद्र सरकार को नोटिस
Trans Woman Teacher Sacked: उत्तर प्रदेश और गुजरात में ट्रांसजेंडर शिक्षिका की लैंगिक पहचान उजागर होने के बाद उसे नौकरी से हटा दिया गया, इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी गई.
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Trans Woman Teacher Sacking Case: गुजरात और उत्तर प्रदेश में ट्रांसजेंडर महिला शिक्षिका की लैंगिक पहचान उजागर होने के बाद सेवा से हटा दिया गया था. अब उसने सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर याचिका लगायी है, जिस पर दोनों राज्यों की सरकारों के साथ ही केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट उस ट्रांसजेंडर शिक्षिका की याचिका पर सुनवाई करने के लिए मंगलवार (2 जनवरी) को सहमत हो गया, जिसकी सेवा गुजरात और उत्तर प्रदेश के अगल-अलग निजी स्कूलों ने उसकी लैंगिक पहचान उजागर होने के बाद समाप्त कर दी थी. भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी परदीवला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने ट्रांसजेंडर महिला की याचिका पर केंद्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश सरकारों को नोटिस जारी किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
याचिका पर सुनवाई के बाद नोटिस जारी करते हुए इन जजों की पीठ ने कहा, ‘‘हम देखेंगे कि इस मामले में हम क्या कर सकते हैं.’’ इसके अलावा, उच्चतम न्यायालय ने गुजरात के जामनगर स्थित स्कूल के प्रमुख और उत्तर प्रदेश के खीरी स्थित एक अन्य निजी स्कूल के अध्यक्ष से भी जवाब मांगा है. पीठ ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि उसकी लैंगिक पहचान उजागर होने के बाद उत्तर प्रदेश और गुजरात के स्कूलों में उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं. याचिकाकर्ता का कहना है कि वह दो अलग-अलग उच्च न्यायालयों में अपनी शिकायत के लिए नहीं जा सकतीं.’’
छह दिन के बाद समाप्त की सेवा, गुजरात में ज्वाइन करने से रोका
न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक पीठ चार सप्ताह बाद याचिका पर सुनवाई करेगी. ट्रांसजेंडर महिला की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि उत्तर प्रदेश के एक स्कूल की ओर से उनकी मुवक्किल को नियुक्ति पत्र दिया गया था और हटाए जाने से पहले उन्होंने छह दिन तक सेवा भी दी थी. जैसे ही पता चला कि वह ट्रांसजेंडर हैं, उन्हें नौकरी से हटा दिया गया. वकील ने कहा कि गुजरात के स्कूल की ओर से भी नियुक्ति पत्र दिया गया, लेकिन मुवक्किल की लैंगिक पहचान उजागर होने के बाद उन्हें कार्य शुरू ही नहीं करने दिया गया. सुप्रीम कोर्ट में आवेदन कर याचिकाकर्ता ने अपने मौलिक अधिकारों की बहाली की मांग की है.
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