जम्मू-कश्मीर: 4G इंटरनेट बहाल करने का मसला SC ने सरकार पर छोड़ा, कहा- उच्च स्तरीय कमेटी ले जिलावार फैसला
जम्मू-कश्मीर में 4G इंटरनेट बहाल करने का मसला SC ने सरकार पर छोड़ा दिया है.कोर्ट ने कहा कि उच्च स्तरीय कमेटी जिलावार फैसला ले.
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में 4G इंटरनेट बहाल करने का मसला सुप्रीम कोर्ट ने उच्च अधिकारियों की एक कमेटी पर छोड़ दिया है. कोर्ट ने कहा है कि कमेटी हर जिले और क्षेत्र में सुरक्षा के खतरे की अलग-अलग समीक्षा करे. उसके आधार पर हर इलाके के लिए अलग फैसला लिया जाए.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एन वी रमना, आर सुभाष रेड्डी और बी आर गवई की बेंच ने फैसले में लिखा है, “महामारी के दौरान कम स्पीड वाले इंटरनेट से केंद्र शासित प्रदेश के लोगों को हो रही समस्या हमारे संज्ञान में लायी गयी. जवाब में केंद्र ने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े कुछ गंभीर मुद्दे हमारे सामने रखे. दोनों बातों में संतुलन बनाना जरूरी है.''
फैसले में आगे लिखा गया है, “हमने जनवरी में दिए फैसले में केंद्र शासित प्रदेश में इंटरनेट बहाली से जुड़ा मसला एक उच्च स्तरीय कमेटी को सौंपा था. हमारा अभी भी मानना है कि पूरे प्रदेश में एक आदेश के जरिए हाई स्पीड इंटरनेट नहीं देना उचित नहीं है. हर इलाके की सुरक्षा स्थिति की समीक्षा कर अलग-अलग फैसला लिया जाना चाहिए.''
कोर्ट ने केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में एक विशेष कमेटी बनाने का आदेश दिया. इस कमेटी में केंद्रीय टेलीकॉम सचिव के साथ जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव भी होंगे. 3 उच्च अधिकारियों की यह कमेटी याचिकाकर्ताओं की तरफ से रखे गए बिंदुओं पर विचार करेगी. कमेटी हर इलाके में सुरक्षा स्थिति का आकलन करने के बाद केंद्र शासित क्षेत्र प्रशासन को सिफारिश देगी. उसी के आधार पर इलाके में प्रायोगिक तौर पर 3G या 4G इंटरनेट उपलब्ध कराया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट में फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स नाम की संस्था की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया था कि जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट की सही सुविधा नहीं होने के कारण डॉक्टर कोविड 19 के इलाज को लेकर दुनिया भर में हो रही गतिविधियों की जानकारी हासिल नहीं कर पा रहे हैं. लॉकडाउन के दौरान जिन मरीजों का घर से निकलना मुश्किल है, वह 4G इंटरनेट न होने के चलते डॉक्टरों से मशवरा भी नहीं ले पा रहे हैं.
वहीं कुछ निजी स्कूलों की तरफ से कहा गया था कि देश भर में बच्चे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पढ़ाई कर रहे हैं. लेकिन धीमी स्पीड के 2G इंटरनेट के चलते जम्मू-कश्मीर के बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं. शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार है. इसलिए कोर्ट मामले में दखल दे.
जम्मू-कश्मीर प्रशादन की तरफ से इन बातों का जवाब देते हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि वहां स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था सुचारू रूप से काम कर रही है. वहीं केंद्र सरकार की तरफ से एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा था कि वहां अब भी आंतरिक सुरक्षा को गंभीर खतरा बना हुआ है. मोबाइल इंटरनेट को 2G तक सीमित रखने से भड़काऊ सामग्री के प्रसार पर नियंत्रण है. स्वास्थ्य और शिक्षा के नाम पर सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता.
एटॉर्नी जनरल ने हंदवाड़ा की घटना का हवाला देते हुए कहा था, “कल ही हंदवाड़ा में एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई है, जिसमें 5 जवान मारे गए. क्या हम आतंकवादियों और उनके समर्थकों को इस बात की सुविधा दें कि वह सेना के मूवमेंट की वीडियो बना कर सीमा पार भेजें? इंटरनेट की सीमित स्पीड सिर्फ वहां के लोगों की सुरक्षा के लिए जरूरी नहीं है, बल्कि यह सीधे देश की सुरक्षा से जुड़ा मसला है." इन दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 4 मई को फैसला सुरक्षित रखा था.
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