दाऊद इब्राहिम के सहयोगी नेताओं के नाम वाली रिपोर्ट सार्वजनिक करने पर सुनवाई से SC ने मना किया, कहा- याचिका का मकसद प्रचार
1993 में आई एन एन वोहरा कमिटी रिपोर्ट के बारे में यह माना जाता है कि उसमें देश के कई बड़े नेताओं के दाऊद इब्राहिम से संबंधों का खुलासा किया गया था. लेकिन तत्कालीन सरकार ने रिपोर्ट के उन हिस्सों को सार्वजनिक नहीं होने दिया.
नई दिल्ली: राजनेताओं और आपराधिक गिरोहों के गठजोड़ की जांच के लिए बनी वोहरा कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक करने पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. याचिकाकर्ता का कहना था कि 1993 में आई इस रिपोर्ट में बड़े-बड़े नेताओं के नाम थे, लेकिन सरकार ने उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया. कोर्ट सरकार को रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करने का आदेश दे.
यह याचिका बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की तरफ से दाखिल हुई थी. मामला जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली तीन जजों की उसी बेंच के सामने लगा, जिसने याचिका पर सुनवाई से मना किया था. उस याचिका में भ्रष्टाचारियों की संपत्ति ज़ब्त करने और उन्हें उम्र कैद की सजा देने की मांग की गई थी. जजों ने इस याचिका पर भी हैरानी जताई. उन्होंने कहा, "लगता है याचिकाकर्ता चाहता है कि कोर्ट के पूरे देश की साफ सफाई कर दे. ऐसी याचिकाओं के पीछे कोई ठोस आधार नहीं होता है. घुमा फिरा कर कही गई बातें होती हैं और मकसद प्रचार का होता है."
"लोकपाल को किसी मसले पर संज्ञान लेकर जांच करने का अधिकार नहीं" याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील अनुपम लाल दास ने कहा, "इस मामले में दाखिल एक याचिका को 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया था और सरकार को कार्रवाई का निर्देश दिया था. पर सरकार ने ऐसा नहीं किया. उस आदेश में यह भी कहा गया था कि लोकपाल जैसी कोई संस्था बनाकर पूरा मामला उसे सौंप दिया जाए. आज देश में लोकपाल का गठन तो हो गया है, लेकिन उसे खुद से किसी मसले पर संज्ञान लेकर जांच करने का अधिकार नहीं दिया गया है. इसमें बदलाव होना चाहिए."
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा इस पर जजों ने कहा, "आप अपनी याचिकाओं के जरिए देश की हर समस्या का समाधान देना चाहते हैं. लेकिन हर बात पर न तो याचिका हो सकती है, न कोर्ट उस पर आदेश दे सकता है. बेहतर हो कि आप इन मसलों पर किताब लिखिए." कोर्ट के रुख को देखते हुए वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी. कोर्ट ने इसकी इजाजत दे दी.
1993 में आई एन एन वोहरा कमिटी रिपोर्ट के बारे में यह माना जाता है कि उसमें देश के कई बड़े नेताओं के दाऊद इब्राहिम से संबंधों का खुलासा किया गया था. लेकिन तत्कालीन सरकार ने रिपोर्ट के उन हिस्सों को सार्वजनिक नहीं होने दिया. याचिकाकर्ता का कहना था कि कोर्ट गृह मंत्रालय को यह रिपोर्ट सीबीआई, एनआईए, ईडी समेत तमाम एजेंसियों को उपलब्ध करवाने के लिए कहे, ताकि यह संस्थाएं अपने अपने अधिकार क्षेत्र के मुताबिक संदिग्ध नेताओं के खिलाफ जांच और आगे की कार्रवाई कर सकें. लेकिन कोर्ट ने मामले पर सुनवाई से मना कर दिया.
ये भी पढ़ें- नड्डा पर हमला: गवर्नर धनखड़ा का आरोप- बंगाल में कानून व्यवस्था खराब, सीएम ममता को संविधान का पालन करना होगा
जेल में ही रहेंगे RJD सुप्रीमो लालू यादव, डेढ़ महीने तक के लिए HC ने टाली सुनवाई