नई दिल्ली: 5 साल से ज्यादा की सजा वाले अपराध के आरोपी सांसदों/विधायकों की सदस्यता रद्द करने पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. कोर्ट ने माना है कि अभी इस तरह का कोई कानून नहीं है. कानून बनाना विधायिका का काम है, जिसमें कोर्ट दखल नहीं दे सकता.


मामले पर याचिका एनजीओ लोक प्रहरी की तरफ से दाखिल ली गयी थी. इसमें सुप्रीम कोर्ट की ही पुरानी टिप्पणी का हवाला दिया गया था. कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि जिन लोगों के खिलाफ गंभीर अपराध के लिए आरोपपत्र दाखिल हो चुका है, उन्हें चुनाव लड़ने से रोका जाना चाहिए. इस बारे में संसद को कानून बनाना चाहिए. यह मसला लॉ कमीशन को भी सौंपा गया था. उसने भी अपनी सिफारिश में कहा कि जिन लोगों के ऊपर 5 साल से ज्यादा की सजा वाले अपराध के लिए कोर्ट में आरोप तय हो चुके हैं, उन्हें चुनाव नहीं लड़ने देना चाहिए. लेकिन संसद ने अब तक इस मसले पर कोई कानून नहीं बनाया.


जस्टिस नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने दलील रख रहे एनजीओ के सचिव एस एन शुक्ला ने कहा, "विधायिका में अपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों भरमार है. वह कभी नहीं चाहेंगे कि इस तरह का कानून बने. इसलिए अब तक कोर्ट और लॉ कमीशन की सिफारिश की उपेक्षा की गई है. इस बीच में कई चुनाव हुए. इनमें फिर से गंभीर अपराध के आरोपी संसद और विधानसभाओं में पहुंच गए .उन सब का चुनाव जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 100 के तहत अमान्य करार दिया जाना चाहिए."


याचिकाकर्ता की इस दलील पर कोर्ट ने कहा, "हम यह स्वीकार करते हैं कि संसद ने इस जरूरी विषय पर अब तक कानून नहीं बनाया है. लेकिन संविधान के तहत शक्तियों का बंटवारा इस प्रकार किया गया है कि कानून बनाना विधायिका के अधिकार क्षेत्र आता है. ऐसे में हम अपनी तरफ से कोई कानून नहीं बना सकते. कानून के अभाव में आप जो मांग हमारे सामने रख रहे हैं, उसे भी पूरा नहीं किया जा सकता है."


शुक्ला ने जजों से याचिका खारिज न करने की गुहार की. कहा, "संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को अपार शक्ति हासिल है. आप उसका इस्तेमाल करें. कानून में जो कमी उसे पूरा कर दें. 2018 में पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत सरकार मामले में खुद सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के अपराधीकरण को रोकने को लेकर कई टिप्पणियां की थीं. मैं उसी भावना के पालन की गुहार कोर्ट से कर रहा हूं."


लेकिन जज कोई आदेश जारी करने पर सहमत नहीं हुए. उन्होंने याचिकाकर्ता से कहा, "हमने इस विषय को महत्वपूर्ण माना. इसलिए, आधा घंटा से भी ज्यादा समय तक आपको सुना. लेकिन हम कोई आदेश जारी नहीं करना चाहते हैं. अगर कोई पुराना फैसला है जिसे लागू नहीं किया गया है, तो इस बारे में आप अलग से से याचिका दाखिल कर सकते हैं."


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