नई दिल्ली: "ग़ालिब भी और कबीर भी! नाम तो आपका बड़ा दिलचस्प है. खैर बताइए क्या चाहते हैं?" चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े ने यह सवाल जिस वकील से पूछा, उनका नाम था- ग़ालिब कबीर. वकील साहब का नाम जितना दिलचस्प था, उतना ही दिलचस्प उनका मामला था और उतने ही दिलचस्प तरीके से कोर्ट में कार्रवाई चली.
कोर्ट के सवाल का जवाब देते हुए ग़ालिब ने बताया- "हमारी याचिका देश में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग लागू करने को लेकर है." इसके बाद वकील साहब बोलते रहे लेकिन उनकी आवाज़ गायब हो गई. दरअसल, इन दिनों कोर्ट में सारी सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए चल रही है. उसमें इस तरह की तकनीकी दिक्कतें अक्सर सामने आती हैं.
जजों ने थोड़ी देर तक धैर्य रखा. लेकिन वकील की आवाज़ स्पष्ट नहीं हुई. आखिरकार, बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस ने कहा, "देखिए, यह तो हाल है. हम आपकी बात सुन नहीं पा रहे और आप चाहते हैं कि देश के हर वोटर से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग करवाई जाए."
जजों की बात सुन कर वकील ने जवाब देने की कोशिश की. लेकिन जज याचिका को लेकर भी आश्वस्त नहीं थे. बेंच के तीनों जजों ने थोड़ी देर चर्चा की और कहा, "यह मामला ऐसा नहीं, जिसमें कोर्ट आदेश दे. इस तरह का फैसला सरकार को लेना होता है. आप सरकार को ज्ञापन दे सकते हैं."
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान वीडियो कांफ्रेंसिंग से जुड़े सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि अगर याचिकाकर्ता सरकार को ज्ञापन सौंपता है, तो उस पर विचार कर उचित फैसला लिया जाए. इसके साथ ही कोर्ट ने मामले का निपटारा कर दिया.
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