नई दिल्ली: तबलीगी मरकज मामले की मीडिया रिपोर्टिंग के खिलाफ जमीयत उलेमा ए हिंद की याचिका पर कोई अंतरिम आदेश देने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि वह मीडिया पर पाबंदी लगाने का कोई आदेश नहीं देना चाहता है. जमीयत पहले प्रेस काउंसिल को मामले में पक्षकार बनाए. उसके बाद ही कोई सुनवाई होगी.
सुन्नी देवबंदी उलेमाओं के संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद ने मीडिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसमें कहा गया था कि तबलीगी जमात के मरकज पर मीडिया ने बहुत गैरजिम्मेदाराना रिपोर्टिंग की है. वहां हो रहे धार्मिक आयोजन में देश-विदेश से आए कई लोग जमा थे. उनमें से कुछ लोगों को कोरोना पॉजिटिव पाया गया. दुर्भाग्य से मरकज में शामिल होकर तेलंगाना गए छह लोगों की मौत भी हुई. लेकिन मीडिया ने मामले को सांप्रदायिक रंग दे दिया. ऐसा दिखाया जाने लगा जैसे देश के मुसलमान कोरोना फैलाने की कोई मुहिम चला रहे हैं.
मामले की सुनवाई करने बैठे चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े, जस्टिस नागेश्वर राव और एम शांतनागौडर इस याचिका से आश्वस्त नजर नहीं आए. संविधान के संरक्षक माने जाने वाले सुप्रीम कोर्ट ने लगातार मीडिया, लेखक, सिनेमा निर्माता, चित्रकारों समेत तमाम लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अहमियत हमेशा है. ऐसी में जजों का सवाल था कि वह मीडिया पर पाबंदी लगाने का आदेश होते क्यों दे.
जमीयत की तरफ से पेश वकील एजाज मकबूल ने मीडिया पर तमाम आरोप लगाए. उन्होंने कहा, “मीडिया सांप्रदायिकता फैला रहा है. तमाम तरह की झूठी खबरें मीडिया और सोशल मीडिया पर चल रही हैं. यह दिखाया जा रहा है कि मुसलमान बर्तनों को जूठा कर रहे हैं. फल और सब्जियों को जूठा कर रहे हैं. उनका मकसद कोरोना फैलाना है. नौबत यह आ गई है कि मुसलमानों का आर्थिक बहिष्कार करने की धमकी दी जाने लगी है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट का दखल देना जरूरी है.“
लेकिन जज इन दलीलों से संतुष्ट नजर नहीं आए. उनका कहना था कि मीडिया किसी भी मामले की को दुनिया के सामने लाता है. अगर उसके तौर-तरीकों में कोई कमी हो तो उसे देखना अदालत का काम नहीं है. बेंच की अध्यक्षता कर रहे हैं चीफ जस्टिस ने एजाज मकबूल से पूछा, “आपने अपनी याचिका में प्रेस काउंसिल को पक्षकार क्यों नहीं बनाया है. आपकी इन दलीलों के आधार पर हम कोई आदेश पारित नहीं कर सकते.“
इसके बाद मकबूल ने कहना शुरू कर दिया कि कई जगह पर मुसलमानों को मारने की धमकी दी जा रही है. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, “आप मरने या मारने वाली दलील न दें, तो बेहतर है. अगर किसी को ऐसी धमकी दी जा रही है तो उसके पास तमाम कानूनी विकल्प उपलब्ध हैं. इस तरह से किसी PIL पर सुनवाई करते हुए हम मीडिया पर पाबंदी लगाने का आदेश क्यों दे दें?”
आखिरकार, जजों ने जमीयत के वकील से कहा कि वह पहले प्रेस काउंसिल को पक्षकार बनाते हुए नई अर्जी दाखिल करें. कोर्ट 2 हफ्ते के बाद मामले को दोबारा सुनेगा. फिलहाल इस याचिका पर किसी भी तरह का आदेश पारित नहीं किया जाएगा. मस्जिदों और मदरसों के एक और संगठन में भी मिलती-जुलती याचिका दाखिल की थी. इसमें कर्नाटक में मुसलमानों के साथ हुई मारपीट का हवाला देते हुए मीडिया के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी. कोर्ट ने उस पर भी कोई आदेश देने से मना कर दिया.