Maratha Reservation: आरक्षण की अधिकतम सीमा बदलने पर विचार से SC का इनकार, रद्द किया महाराष्ट्र का मराठा आरक्षण
Maratha Reservation Supreme Court Verdict: सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत बने रहने के फैसले पर दोबारा विचार करने से मना कर दिया है. साथ ही कोर्ट ने महाराष्ट्र के मराठा आरक्षण को भी असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है.
देश में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत की बनी रहेगी. सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में 1992 में दिए गए फैसले पर दोबारा विचार करने से मना कर दिया है. साथ ही, आज दिए एक अहम फैसले में कोर्ट ने महाराष्ट्र के मराठा आरक्षण को भी असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है.
क्या था मामला
2018 में भारत सरकार ने राज्य के मराठा वर्ग को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया था. यह आरक्षण ओबीसी जातियों को दिए गए 27 प्रतिशत आरक्षण से अलग था. मराठा वर्ग को अलग से आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार ने रिटायर्ड हाई कोर्ट जज जस्टिस गायकवाड कमिटी की रिपोर्ट को आधार बनाया.
इसमें मराठा वर्ग के लिए विशेष उपाय करने की सिफारिश की गई थी. इस विशेष आरक्षण के लागू होने से महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 60 प्रतिशत से भी ज्यादा हो गया. इसे आधार बनाते हुए कई याचिकाकर्ता बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचे.
हाई कोर्ट ने बनाए रखा आरक्षण
2019 में दिए फैसले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि सामान्य स्थितियों में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत होनी चाहिए लेकिन असाधारण स्थिति में किसी वर्ग को विशेष आरक्षण दिया जा सकता है. इस दलील को आधार बनाते हुए हाई कोर्ट ने मराठा आरक्षण को मंजूरी दे दी लेकिन इसे घटाकर शिक्षा के लिए 13 प्रतिशत और नौकरी के लिए 12 प्रतिशत कर दिया.
कोर्ट के सामने मुख्य सवाल
मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी. मामला 5 जजों की संविधान पीठ को सौंपा गया. बेंच ने तीन मुख्य बातों पर विचार किया :-
* मराठा आरक्षण संवैधानिक रूप से वैध है या नहीं?
* क्या आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत करने वाले फैसले पर दोबारा विचार की जरूरत है?
* संविधान में 102वें संशोधन और अनुच्छेद 342A जोड़े जाने के बाद क्या राज्य सरकार को अधिकार है कि वह अपनी तरफ से किसी वर्ग को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से कुछ पिछड़ा घोषित कर आरक्षण दें?
फैसले का असर
सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने अपने फैसले में सबसे पहले कहा है कि इंदिरा साहनी फैसले पर दोबारा विचार की जरूरत नहीं है. ऐसे में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत बनी रहेगी. कोर्ट ने इसके परे जा कर दिए गए मराठा आरक्षण को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है. जजों ने यह भी कहा है जिस गायकवाड कमेटी की रिपोर्ट को आधार बनाकर आरक्षण दिया गया था, उस में कहीं भी नजर नहीं आता है कि राज्य में कोई ऐसी असाधारण स्थिति थी, जिसके चलते किसी वर्ग को विशेष आरक्षण देना जरूरी हो गया था.
कोर्ट ने संविधान के 102वें संशोधन और अनुच्छेद 342A को भी संवैधानिक करार दिया है. इससे भविष्य में यह होगा कि राज्य सरकार को किसी वर्ग को SEBC की लिस्ट में जोड़ने के लिए राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति से सिफारिश भेजनी होगी. राष्ट्रपति राज्यपाल और राज्य सरकार से चर्चा कर लिस्ट में बदलाव को मंजूरी देंगे.
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