नई दिल्ली. देश की सर्वोच्च अदालत ने महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन के सरकार बनाने के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इस तरह की सुनवाई हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं है. ऐसे मामलों में फैसला जनता को लेना होता है.
दरअसल महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के सरकार गठन को लेकर हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका में हिंदू महासभा नेता प्रमोद जोशी ने कहा कि चुनाव पूर्व का गठबंधन तोड़ कर बना यह गठबंधन लोगों के साथ धोखा और असंवैधानिक है. उसके सीएम को शपथ लेने से रोका जाए. इस पर कोर्ट ने कहा कि "इस तरह की सुनवाई हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं. संवैधानिक नैतिकता और राजनीतिक नैतिकता अलग-अलग चीजें हैं."
अपनी टिप्पणी में सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि राजनीतिक दल लोगों से किया वादा पूरा करें, यह अच्छा है, लेकिन अगर वह ऐसा नहीं करते तो इस पर सुनवाई कोर्ट का काम नहीं. ऐसे मामलों पर फैसला जनता को लेना होता है, कोर्ट को नहीं. इससे पहले हिंदू महासभा ने शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के मिलकर बनाने को लेकर जनता के साथ की गई धोखेबाजी बताया. साथ ही महासभा ने इस गठबंधन को असंवैधानिक करार दिया.
गौरतलब है कि 24 अक्टूबर को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजों की घोषणा की गई थी. सूबे में किसी एक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. चुनाव में शिवसेना-बीजेपी और कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन कर चुनाव लड़ी थी. लेकिन चुनाव बाद मुख्यमंत्री पद की मांग करते हुए शिवसेना ने बीजेपी से 30 साल पुराना गठबंधन तोड़ लिया और कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बनाने की कवायद शुरू की.
बातचीत चल ही रही थी कि 23 नवंबर को अचानक बीजेपी ने एनसीपी के बागी नेता अजित पवार के सहयोग से सरकार बना ली. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने 23 नवंबर की सुबह देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और अजित पवार को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई.
कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना ने राज्यपाल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. शीर्ष अदालत ने राज्यपाल से मंगलवार की शाम तक बहुमत परीक्षण कराए जाने का आदेश दिया. लेकिन बहुमत से दूर होता देख देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार ने पद से इस्तीफा दे दिया. वहीं कल शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली.
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