Supreme Court: पूर्वोत्तर भारत (Northeast India) के लोगों से भेदभाव रोकने के लिए दिशा निर्देश बनाने की मांग पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मना कर दिया है. याचिका में यूट्यूब (Youtube) में मौजूद अपमानजनक वीडियो का हवाला दिया गया था. यह मांग भी की गई थी कि स्कूली पाठ्यक्रम में बच्चों को पूर्वोत्तर के लोगों के बारे में जागरूक बनाना चाहिए.
अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) की रहने वाली वकील ज्योति ज़ोंगलुजु (Jyoti Zongluju) की याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डी. वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, "याचिका में उठाए गए मुद्दे से असहमत होने की कोई वजह नहीं लेकिन सभी मांग कोर्ट के दायरे से बाहर हैं. अगर यूट्यूब में कोई वीडियो गलत है तो उसकी शिकायत पुलिस को दी जा सकती है."
कोर्ट सरकार को नीति बनाने का आदेश नहीं दे सकती- चीफ जस्टिस
चीफ जस्टिस ने आगे कहा, "इतिहास, भूगोल में बच्चों को क्या पढ़ाया है यह शिक्षा नीति का मसला है. आपकी अगर कोई मांग है तो उसे अपने सांसद के सामने रखिए. वो इसे संसद में उठा सकते हैं. कोर्ट सरकार को आदेश नहीं दे सकता कि वो क्या नीति बनाए." याचिकाकर्ता ने दलील दी कि कोविड के दौरान पूर्वोत्तर भारत के लोगों को भेदभाव का सामना करना पड़ा. कोर्ट को इस पर कुछ करना चाहिए. चीफ जस्टिस ने कहा कि कोई भी पीड़ित मौजूदा कानून के तहत कदम उठा सकता है. सुप्रीम कोर्ट आईपीसी में अलग से कोई धारा नहीं जोड़ सकता.
चीफ जस्टिस ने रखा अपना व्यक्तिगत विचार
स्कूली शिक्षा में नया अध्याय जोड़ने की मांग और टिप्पणी करते हुए चीफ जस्टिस ने अपना व्यक्तिगत विचार भी रखा. उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि बच्चों को कम से कम पढ़ाया जाना चाहिए. उन्हें खुद दुनिया का ज्ञान अर्जित करने देना चाहिए लेकिन हमने उनके ऊपर सिलेबस का बोझ बढ़ा रखा है."
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