नई दिल्ली: चर्च से मिलने वाले तलाक को कानूनी मान्यता देने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. कोर्ट ने इस दलील को मानने से मना कर दिया है कि मुसलमानों के तीन तलाक की तरह चर्च से मिलने वाले तलाक को भी वैध माना जाए.

इस मसले पर 2013 में दाखिल याचिका को ख़ारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि ईसाईयों के ऊपर इंडियन डाइवोर्स एक्ट लागू है. इसके तहत सिर्फ कानूनी अदालतों को ही तलाक पर आदेश देने का अधिकार है. चर्च की कोर्ट से दिये जाने वाले तलाक को कोई कानूनी मान्यता नही है.

सुप्रीम कोर्ट में याचिका कर्नाटक कैथोलिक एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष क्लेरेंस पेस ने दायर की थी. याचिका में मांग की गई थी कि चर्च से मिले तलाक पर सिविल कोर्ट की मुहर की बाध्यता खत्म कर दी जाए. याचिकाकर्ता ने क्रिश्चियन कैनन लॉ का हवाला दिया था. इसमें विवाह और तलाक को धार्मिक गतिविधि का हिस्सा बताते हुए चर्च के पादरी की भूमिका को ज़रूरी बताया गया है.

याचिका में कहा गया था कि चर्च से तलाक का आदेश हासिल करने के बाद जब कुछ लोगों ने दूसरी शादी की तो उन पर बहुविवाह का मुकदमा दर्ज हो गया. याचिका में मांग की गयी थी कि लोगों को परेशानी से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट कैनन लॉ को कानूनी मान्यता दे.

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने याचिका का कहा था कि ईसाईयों पर इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट,1872 और डाइवोर्स एक्ट 1869 लागू हैं. इनमें कानूनी अदालत में ही तलाक की बात कही गयी है. चर्च से तलाक की इजाज़त देना गलत होगा.