शाहीनबाग पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, पब्लिक प्लेस पर अनिश्चितकाल तक नहीं हो सकता प्रदर्शन
दिल्ली के शाहीन बाग में CAA को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन के नाम पर सड़क रोकने को सुप्रीम कोर्ट ने गलत बताया है. कोर्ट ने कहा प्रशासन को मामले में कार्रवाई करनी चाहिए थी, जो उसने नहीं की.
दिल्ली: शाहीन बाग में CAA विरोध प्रदर्शन के नाम पर सड़क रोके जाने को सुप्रीम कोर्ट ने गलत कहा है. कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए थी, जो उसने नहीं की. कोर्ट ने यह भी उम्मीद जताई है कि भविष्य में ऐसी स्थिति नहीं बनेगी.
विरोध के अधिकार की सीमा
शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों को हटाए जाने के करीब 7 महीने बाद दिए फैसले में कोर्ट ने कहा है कि नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन और विरोध में लोगों के विचार हैं. आज के दौर में सोशल मीडिया पर होने वाली चर्चा से भी भावनाएं और तेज़ होती हैं. विरोध करने वालों ने प्रदर्शन के ज़रिए अपनी बात रखी. लेकिन एक अहम सड़क को लंबे अरसे तक रोक देना सही नहीं था.
जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है, “संविधान के अनुच्छेद 19 1(a) के तहत अपनी बात कहना और 19 1(b) के तहत किसी मसले पर शांतिपूर्ण विरोध करना लोगों का संवैधानिक हक है. लेकिन इस अधिकार की सीमाएं हैं. सार्वजनिक जगह को अनिश्चितत काल तक नहीं घेरा जा सकता. दूसरे लोगों के आने-जाने को बाधित नहीं किया जा सकता. ऐसी स्थिति में प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए. इस मामले में भी कार्रवाई होनी चाहिए थी. लेकिन ऐसा नहीं किया गया."
क्या है मामला
दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ करीब 100 दिनों तक लोग सड़क रोक कर बैठे थे. दिल्ली को नोएडा और फरीदाबाद से जोड़ने वाले एक अहम रास्ते को रोक दिए जाने से रोज़ाना लाखों लोगों को परेशानी हो रही थी. इसके खिलाफ वकील अमित साहनी और बीजेपी नेता नंदकिशोर गर्ग ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी.
कोर्ट ने पुलिस को भीड़ पर कार्रवाई का निर्देश देने की बजाय लोगों को समझा कर हटाना उचित समझा. इस काम के लिए 2 वार्ताकार संजय हेगड़े और साधना रामचंद्रन को नियुक्त कर दिया. इस बीच कोरोना के चलते कोर्ट का सामान्य कामकाज बाधित हो गया.
आखिरकार 21 सितंबर को मामला जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने लगा. उस दिन सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने जजों को बताया कि लॉकडाउन लागू होने के बाद प्रदर्शकारियों को सड़क से हटा दिया गया था. इस जानकारी के बाद कोर्ट ने मामले पर आगे सुनवाई को गैरज़रूरी माना.
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से अनुरोध किया गया कि भविष्य में ऐसी स्थिति से बचाव के लिए वह कुछ निर्देश दें. जजों ने भी माना कि लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन के अधिकार और लोगों के मुक्त आवागमन के अधिकार में संतुलन को लेकर स्पष्टता की ज़रूरत है. अब यह आदेश आया है.
कोर्ट के पीछे न छुपें
मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने कोर्ट से प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई की इजाज़त मांगी थी. उस पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा है, “हमारा काम किसी कार्रवाई की वैधता तय करना है. प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए. इसके लिए हमारा सहारा नहीं लेना चाहिए. अगर इस मामले में कार्रवाई की गई होती तो याचिकाकर्ताओं को यहां आने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती.“
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