नई दिल्लीः सबरीमाला मंदिर में सभी आयुवर्ग की महिलाओं को एंट्री देने के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. केरल सरकार ने याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि कोर्ट के फैसले में कोई गलती नहीं है और विरोध प्रदर्शनों के चलते फैसला नहीं बदला जा सकता. केरल सरकार ने इन पुनर्विचार याचिकाओं का पुरजोर विरोध करते हुये कहा कि इनमें से किसी भी याचिका में ऐसा कोई ठोस आधार नहीं बताया गया है, जिसकी बिना पर 28 सितंबर, 2018 के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत हो. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मामले में पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया है.


चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस आरएफ नरीमन जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संविधान बेंच इन पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. 5 जजों की बेंच ने सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा है. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ 28 सितंबर, 2018 के शीर्ष अदालत के फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.


किन-किन ने डाली है याचिकाएं
नायर सर्विस सोसायटी और धर्म स्थल के तंत्री सहित कई संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध करते हुये न्यायालय में याचिकायें दायर की हैं. नायर सर्विस सोसायटी की ओर से पूर्व अटॉर्नी जनरल के परासरन ने बहुमत के फैसले की आलोचना की और कहा कि संविधान का अनुच्छेद 15 देश के सभी नागरिकों के लिये सारी सार्वजनिक और पंथनिरपेक्ष संस्थाओं को खोलता है परंतु इस अनुच्छेद में धार्मिक संस्थाओं को शामिल नहीं किया गया है. पूर्व अटॉर्नी जनरल ने सबरीमला मंदिर में स्थापित मूर्ति के चरित्र का जिक्र करते हुये कहा कि न्यायालय को इस पहलू पर भी विचार करना चाहिए था


याचिकाकर्ताओं ने दी दलील
सबरीमाला पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने कहा कि कोर्ट ने भगवान अयप्पा के नैसिक ब्रह्मचारी होने की मान्यता पर ध्यान नहीं दिया. धर्म मान्यता के हिसाब से चलता है, संवैधानिक नैतिकता का सिद्धांत जबरन नहीं थोपा जा सकता. अयप्पा में आस्था रखने वाली महिलाओं को इस नियम से कोई परेशानी नहीं है और लोगों ने इसे स्वीकार नहीं किया है. इसका भारी विरोध हो रहा है.


त्रावणकोर देवश्वम बोर्ड ने बदला स्टैंड
वहीं त्रावणकोर देवश्वम बोर्ड ने पिछली बार का स्टैंड बदलते हुए कहा कि हमने कोर्ट का फैसला स्वीकार किया है और हम हर उम्र की महिला के मंदिर में जाने के पक्ष में हैं. त्रावणकोर देवश्वम बोर्ड के एक वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि बोर्ड ने एक जागरुक फैसला लिया है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करने और इसको मानने का निर्णय लिया है. बोर्ड मानता है कि ये सही दिशा में लिया गया सही कदम है और प्रार्थना के मामलों में महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिलाएगा.





सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मंदिर में दाखिल होने वाली 2 महिलाओं ने इसके बाद हुए सामाजिक बहिष्कार का हवाला दिया और कहा- भगवान लिंग या उम्र के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही है. सबरीमला मंदिर में प्रवेश कर चुकीं दो महिलाओं ने यह निर्देश देने का अनुरोध किया कि 12 फरवरी को अगली बार मंदिर खुलने पर उन्हें फिर से प्रवेश करने दिया जाए. वहीं इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट से कहा कि दलित हिन्दू महिला बिन्दू और उसका परिवार सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहा है. उसकी मां को जान से मारने की धमकी मिली है.


सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर 2018 को सभी आयु वर्ग की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में जाने की इजाजत देने के फैसले पर मुहर लगाई थी. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिकाओं पर केरल सरकार, नायर सर्विस सोसायटी, त्रावणकोण देवश्वम बोर्ड और दूसरे पक्षकारों को सुना. इस मामले में कुल 64 याचिकायें अदालत के सामने थीं. संविधान बेंच ने आखिर में कहा कि 28 सितंबर, 2018 के फैसले पर पुनर्विचार करने या नहीं करने के बारे में वह अपना आदेश बाद में सुनाएगी.


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