जम्मू में हिरासत में लिए गए रोहिंग्या लोगों की रिहाई की मांग, SC ने आदेश सुरक्षित रखा
मोहम्मद सलीमुल्लाह समेत दूसरे रोहिंग्या लोगों के लिए पेश वकील प्रशांत भूषण ने मांग की कि होल्डिंग सेंटर में रखे गए इन लोगों को भारत से वापस न भेजा जाए.तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच को बताया कि भारत सरकार की म्यांमार सरकार से बातचीत जारी है.
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नई दिल्ली: जम्मू में हिरासत में लिए गए 168 रोहिंग्या लोगों को म्यांमार वापस भेजने पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया है. कुछ रोहिंग्या लोगों की तरफ से वकील प्रशांत भूषण ने इसके खिलाफ याचिका दाखिल की थी. उनकी मांग थी कि इन लोगों को रिहा कर भारत में ही रहने दिया जाए. आज करीब आधा घंटा तक चली सुनवाई में केंद्र के वकील तुषार मेहता और जम्मू-कश्मीर प्रशासन के वकील हरीश साल्वे ने इसका कड़ा विरोध किया.
भारत में रह रहे रोहिंग्याओं को शरणार्थी का दर्जा दिया जाए- प्रशांत भूषण
मोहम्मद सलीमुल्लाह समेत दूसरे रोहिंग्या लोगों के लिए पेश वकील प्रशांत भूषण ने मांग की कि होल्डिंग सेंटर में रखे गए इन लोगों को भारत से वापस न भेजा जाए. साथ ही, भारत में रह रहे सभी रोहिंग्याओं को शरणार्थी का दर्जा दिया जाए. उन्होंने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं कि रोहिंग्या लोग भारत की सुरक्षा को खतरा पहुंचा रहे हैं.
भूषण ने अफ्रीकी देश गांबिया में रह रहे रोहिंग्या लोगों को लेकर आए अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट के फैसले का हवाला दिया. इसका विरोध करते हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जिस अंतर्राष्ट्रीय समझौते के आधार पर वह फैसला आया, भारत ने उस पर दस्तखत नहीं किए हैं. भारत सरकार ने अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय हित के आधार पर कई अंतर्रराष्ट्रीय समझौतों से दूरी रखी है. सरकार को कोर्ट के ज़रिए उन्हें मानने के लिए नहीं कहा जा सकता.
भारत सरकार की म्यांमार सरकार से बातचीत जारी- तुषार मेहता
तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच को बताया कि भारत सरकार की म्यांमार सरकार से बातचीत जारी है. म्यांमार सरकार की पुष्टि के बाद ही इन लोगों को वापस भेजा जाएगा. इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि म्यांमार में मिलिट्री सरकार है. उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. चीफ जस्टिस इस दलील से सहमत नहीं हुए. उन्होंने कहा कि भारत का सुप्रीम कोर्ट किसी दूसरे देश की सरकार को अवैध नहीं घोषित कर सकता.
भूषण ने कहा कि इन सभी लोगों को म्यांमार में जान का खतरा है. वहां की मिलिट्री सरकार इनकी हत्या करवा सकती है. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, "हमने आपकी आशंका को सुना. लेकिन किसी दूसरे देश में वहां के नागरिकों के साथ क्या होगा, इस पर हम नियंत्रण नहीं कर सकते."
संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेष प्रतिनिधि के वकील ने भी रखीं दलीलें
मामले में वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस और संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेष प्रतिनिधि के वकील शिव सिंह ने भी दलीलें रखने की कोशिश की संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि को के मामले में दखल देने का जम्मू कश्मीर के वकील हरीश साल्वे ने कड़ा विरोध किया. उन्होंने कहा इस तरह के प्रतिनिधि को लेकर भारत सरकार का अपना अलग स्टैंड है. सुप्रीम कोर्ट भारत की संप्रभु सरकार के स्टैंड के परे जाकर इन्हें कोर्ट में बात रखने का मौका नहीं दे सकता.
जम्मू के एक एनजीओ 'फोरम फ़ॉर ह्यूमन राइट्स एंड सोशल जस्टिस' के वकील महेश जेठमलानी और अश्विनी उपाध्याय के वकील विकास सिंह ने भी जिरह की. उनका कहना था कि म्यांमार से चले इन लोगों को पश्चिम बंगाल के रास्ते भारत में घुसाया गया. इसके बाद पूरा उत्तरी भारत पार कर जम्मू में एक साजिश के तहत बसाया गया. इसके पीछे मकसद इलाके का जनसंख्या संतुलन बिगाड़ना और भारत की सुरक्षा को खतरा पहुंचाना है. इसलिए, कोर्ट सरकार को रोहिंग्या लोगों पर कार्रवाई से न रोके. उन्हें उनके देश वापस भेजा जाए.
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