नई दिल्ली: नए संसद भवन और सरकारी इमारतों वाले सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट ने कहा है, ''हम इस दलील को खारिज करते हैं कि सेंट्रल विस्टा में कोई नया निर्माण नहीं हो सकता. विचार इस पहलू पर किया जाएगा कि क्या प्रोजेक्ट के लिए सभी कानूनी ज़रूरतों का पालन किया गया.''
क्या है सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट
इस प्रोजेक्ट के तहत नए संसद परिसर का निर्माण किया जाएगा. इसमें 876 सीट वाली लोकसभा, 400 सीट वाली राज्य सभा और 1224 सीट वाले सेंट्रल हॉल का निर्माण होगा. इससे संसद की संयुक्त बैठक के दौरान सदस्यों को अलग से कुर्सी लगा कर बैठाने की ज़रूरत खत्म हो जाएगी. सेंट्रल विस्टा में एक दूसरे से जुड़ी 10 इमारतों में 51 मंत्रालय बनाए जाएंगे. अभी यह मंत्रालय एक-दूसरे से दूर 47 इमारतों से चल रहे हैं. मंत्रालयों को नजदीकी मेट्रो स्टेशन से जोड़ने के लिए भूमिगत मार्ग भी बनाया जाएगा. राष्ट्रपति भवन के नज़दीक प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति के लिए नया निवास भी बनाया जाएगा. अभी दोनों के निवास स्थान राष्ट्रपति भवन से दूर हैं.
याचिकाकर्ताओं की दलील
केंद्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी परियोजना को कई याचिकाओं के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. इन याचिकाओं में कहा गया है कि बिना उचित कानून पारित किए इस परियोजना को शुरू किया गया. इसके लिए पर्यावरण मंजूरी लेने की प्रक्रिया में भी कमियां हैं. हजारों करोड रुपए की यह योजना सिर्फ सरकारी धन की बर्बादी है. संसद और उसके आसपास की ऐतिहासिक इमारतों को इस परियोजना से नुकसान पहुंचने की आशंका है.
याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान और संजय हेगड़े समेत कई वकीलों ने जिरह की. इन वकीलों ने यह भी कहा कि प्रोजेक्ट में पारदर्शिता नहीं बरती गई है. राष्ट्रीय और ऐतिहासिक महत्व के प्रोजेक्ट से पहले लोगों से राय नहीं ली गई. भवन डिज़ाइन और निर्माण कंपनियों को भागीदारी का उचित मौका भी नहीं दिया गया.
सरकार का जवाब
सरकार की तरफ से दलीलों की कमान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने संभाली. उनके अलावा प्रोजेक्ट की सलाहकार कंपनी एचसीपी डिज़ाइन प्लानिंग एंड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड के लिए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने भी जिरह की. याचिकाओं के जवाब में सरकार ने कहा कि मौजूदा संसद भवन और मंत्रालय बदलती जरूरतों के हिसाब से अपर्याप्त साबित हो रहे हैं. नए सेंट्रल विस्टा का निर्माण करते हुए न सिर्फ पर्यावरण का ध्यान रखा जाएगा, बल्कि हेरिटेज इमारतों को नुकसान भी नहीं पहुंचाया जाएगा.
सरकार ने कोर्ट को बताया कि मौजूदा संसद भवन भूकंप के लिहाज से सुरक्षित नहीं है. यह एक ऐतिहासिक धरोहर है. इसे सहेज कर रखने की जरूरत है. लेकिन समय के साथ किए गए बदलाव से इमारत को धीरे-धीरे नुकसान पहुंच रहा है. इसे भविष्य में संसदीय संग्रहालय की तरह इस्तेमाल किया जाएगा, ताकि लोग इतिहास से परिचित हो सकें.
केंद्र सरकार के वकील ने यह भी कहा कि इस समय सभी मंत्रालय कई इमारतों में बिखरे हुए हैं. एक मंत्रालय से दूसरे मंत्रालय जाने के लिए अधिकारियों को वाहन का इस्तेमाल करना पड़ता है. कुछ मंत्रालयों का किराया देने में हर साल सरकार के करोड़ों रुपए खर्च होते हैं. यह कहना गलत है कि सेंट्रल विस्टा के निर्माण में सरकारी धन की बर्बादी हो रही है. बल्कि अब तक होती आ रही धन की बर्बादी को रोकने के लिए यह परियोजना बहुत जरूरी है.
केंद्र सरकार ने इन दलीलों का भी खंडन किया कि इस प्रोजेक्ट से पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा. उन्होंने यह भी कहा कि प्रोजेक्ट से पहले विशेष कानून पारित करना ज़रूरी नहीं था. प्रोजेक्ट सलाहकार कंपनी के वकील हरीश साल्वे ने दलील दी कि इस तरह के नीतिगत मामलों में कोर्ट को सीमित दखल ही देना चाहिए. देश का प्रतिनिधित्व करने वाली चुनी हुई सरकार को ऐसे फैसले लेने का अधिकार है. अगर इसमें कोई अनियमितता है तो उसके लिए अलग से कानूनी कार्रवाई की जा सकती है. लेकिन याचिकाओं में इसकी बजाय किसी भी तरह प्रोजेक्ट का विरोध करने पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया है.