कांग्रेस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच हुए समझौते की जांच की मांग कर रहे याचिकाकर्ता से सुप्रीम कोर्ट ने पहले हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करने के लिए कहा है. इस याचिका में यह बताया गया था कि 2008 में कांग्रेस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच हुआ ‘आपसी सहयोग’ का समझौता संदिग्ध है. मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है. इसकी एनआईए से जांच करवानी चाहिए.


वकील शशांक शेखर झा और पत्रकार सेवियो रोड्रिग्स की याचिका में बताया गया था कि 7 अगस्त 2008 को कांग्रेस ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एक समझौता किया था. लोगों को यह बताया गया कि यह समझौता ‘आपसी सहयोग’ और ‘जानकारियों के लेनदेन’ के लिए किया गया है. लेकिन कभी भी समझौता पत्र को सार्वजनिक नहीं किया गया. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार का शासन 2014 तक चला. इस दौरान चीन ने कई बार भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाने वाली हरकतें की. लेकिन उस पर सरकार का रवैया बेहद कमजोर रहा. इसलिए राष्ट्रीय हित में इस बात की जांच की जरूरत है कि इस समय देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी और चीन में सत्ता पर पूरा नियंत्रण रखने वाली कम्युनिस्ट पार्टी के बीच आखिर क्या समझौता हुआ था? मामले में UAPA के प्रावधानों के तहत एनआईए को जांच का आदेश देना चाहिए.


मामला सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने लगा. चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ताओं के वकील महेश जेठमलानी से पूछा, “क्या आप यह कह रहे हैं कि भारत की एक राजनीतिक पार्टी ने चीन की सरकार के साथ कोई समझौता किया? यह बात तो बहुत बेतुकी लगती है. हमने तो अपने जीवन में कभी ऐसा नहीं सुना. इस पर जेठमलानी ने जवाब दिया, “समझौता चीन की सरकार के साथ नहीं हुआ था. वहां की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ हुआ था जो कि वहां इकलौती पार्टी है और सरकार पर पूरा नियंत्रण रखती है.“


इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, “जो भी हो हमें लगता है कि आपको अपनी याचिका में कही गई बातों पर दोबारा गौर करना चाहिए. इसे बेहतर तरीके से फाइल करना चाहिए. आप जिस तरह की जांच मांग रहे हैं, उसका आदेश तो हाई कोर्ट भी दे सकता है. बेहतर हो कि आप पहले हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करें. याचिकाकर्ता पक्ष के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करने की औपचारिक अनुमति मांगी. इसे स्वीकार करते हुए कोर्ट ने मामले का निपटारा कर दिया.