नई दिल्ली: कोरोना के सस्ते इलाज से जुड़ी दो याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. एक याचिका में सभी निजी अस्पतालों में कोविड-19 के इलाज की अधिकतम फीस तय करने की मांग की गई है. दूसरी याचिका उन अस्पतालों में कोरोना के सस्ते इलाज पर थी, जो सरकार से रियायती कीमत पर मिली ज़मीन पर बने हैं. कोर्ट ने दोनों पर सरकार से जवाब मांगा है.
अधिकतम फीस तय करने की मांग
दोनों याचिकाओं को सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की अलग-अलग बेंच में हुई. पहली याचिका की सुनवाई जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच ने की. इस मामले में याचिकाकर्ता अभिषेक गोयनका की दलील थी कि कोरोना के इलाज के नाम पर निजी अस्पतालों को मनमाना पैसा वसूलने की इजाज़त नहीं होनी चाहिए. इस बीमारी के इलाज की अधिकतम फीस तय की जाए.
कोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए केंद्र से 1 हफ्ते में जवाब देने के लिए कहा. याचिका में मेडिक्लेम करवाए हुए लोगों का कोरोना इलाज कैशलेस किए जाने की मांग की गई है. साथ ही, यह भी कहा गया है कि जिन लोगों ने पहले ही हॉस्पिटल के पैसे दे दिए हैं, उनके लिए मेडिक्लेम के दावों के निपटारे की भी समय सीमा तय की जानी चाहिए.
आयुष्मान योजना में तय कीमत पर इलाज
दूसरी याचिका सरकार से रियायती कीमत पर ज़मीन पाने वाले निजी अस्पताल में मुफ्त कोरोना इलाज को लेकर थी. वकील सचिन जैन की इस याचिका पर चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनवाई की. कोर्ट ने पिछले हफ्ते मामले पर सरकार से जवाब मांगा था.
आज केंद्र ने कोर्ट को बताया कि मौजूदा नियमों के तहत ऐसे अस्पताल 25 फीसदी तक मरीजों का मुफ्त इलाज करते हैं. उनसे इससे ज़्यादा के लिए नहीं कहा जा सकता. इस पर कोर्ट का कहना था कि महामारी के इस दौर में अस्पतालों को पैसे कमाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती. कम से कम खुद को धर्मार्थ कहने वाले अस्पताल तो रियायती दर पर लोगों का कोरोना के मरीज़ों का इलाज कर ही सकते हैं.
इस पर सॉलीसीटर जनरल ने कहा कि स्वास्थ्य राज्य सरकारों का विषय है. वही अस्पतालों को अपनी जमीन देते हैं. नियम में अगर किसी तरह का कोई बदलाव करना है, तो ऐसा राज्य सरकारें कर सकती हैं. केंद्र देश के सभी अस्पतालों के लिए आदेश जारी नहीं कर सकता.
निजी अस्पतालों की तरफ से दो दिग्गज वकील भी आज पेश हुए. हेल्थकेयर फेडरेशन नाम की संस्था के लिए हरीश साल्वे और एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट हॉस्पिटल के लिए मुकुल रोहतगी ने जिरह की. दोनों ही वकीलों का कहना था कि निजी अस्पतालों पर बीमारी के नाम पर मुनाफा कमाने का आरोप लगाना सही नहीं है. इस दौर में दूसरी बीमारियों के लिए अस्पताल आने वालों की संख्या बहुत कम हो गई है. मरीजों की संख्या में लगभग 60 फ़ीसदी तक गिरावट आई है. चैरिटेबल अस्पताल अभी भी 25 फ़ीसदी मरीजों का इलाज मुफ्त कर रहे हैं. अगर कोरोना के मरीजों का भी मुफ्त इलाज करने को कहा गया, तो अस्पताल बंद होने की कगार पर पहुंच जाएंगे.
याचिकाकर्ता सचिन जैन ने दखल देते हुए कहा, "आयुष्मान भारत योजना के तहत कोरोना का इलाज चार हजार रुपए में हो रहा है. जबकि जो लोग इस योजना के दायरे में नहीं आते, उन्हें कम से कम 50 हजार रुपया देना पड़ रहा है. कई मामलों में अधिकतम फीस बहुत ज्यादा हो जाती है. इन अस्पतालों से कहा जाना चाहिए कि वह आयुष्मान भारत योजना के तहत तय कीमत पर ही मरीजों का इलाज करें.
इसका विरोध करते हुए हरीश साल्वे ने कहा, "कई लोग हैं जिन्होंने मेडिक्लेम करवा रखा है. क्या याचिकाकर्ता यह कहना चाहते हैं कि उन इंश्योरेंस कंपनियों को भी आयुष्मान भारत योजना का लाभ दिया जाए. इनकी मांग अव्यवहारिक है. कोर्ट ने सभी पक्षों को इस मसले पर 2 हफ्ते में जवाब देने के लिए कहा है.
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