ट्रांसजेंडर, समलैंगिक पुरुषों और सेक्स वर्कर महिलाओं को रक्तदान की अनुमति न देने वाले नियम पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. मणिपुर की रहने वाली ट्रांसजेंडर सामाजिक कार्यकर्ता थंगजाम सांता सिंह की याचिका में उस नियम को भेदभाव भरा बताया गया है. उनकी याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट ने सरकार, नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल और NACO से जवाब मांगा.


सांता खुरई के नाम से भी पहचानी जाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया है कि 2017 में ब्लड डोनर सेलेक्शन और रेफरल गाइडलाइन जारी किए गए. इनमें रक्तदान करने के योग्य लोगों की सूची दी गई है. सूची के सीरियल नंबर 12 में साफ लिखा है कि ट्रांसजेंडर, समलैंगिक पुरुष और सेक्स वर्कर रक्तदान नहीं कर सकते.


याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ वकील जयना कोठारी ने कोर्ट को बताया कि यह नियम 1980 के दशक में प्रचलित धारणाओं के आधार पर बनाए गए हैं. तब यह माना जाता था कि ट्रांसजेंडर, समलैंगिक और सेक्स वर्कर को एचआईवी/एड्स का खतरा ज़्यादा होता है. जब रक्तदान से पहले हर ब्लड डोनर का एचआईवी, हेपटाइटिस और दूसरी संक्रामक बीमारियों का टेस्ट होता है, तो इन नियमों की कोई ज़रूरत नहीं है.


चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने वरिष्ठ वकील की शुरुआती दलीलों को सुनने के बाद याचिका पर नोटिस जारी कर दिया. वकील ने नियम को समानता और सम्मान से जीने के मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए उस पर तुरंत रोक की मांग की. लेकिन चीफ जस्टिस ने कहा- "हम मेडिकल एक्सपर्ट नहीं हैं. कोई भी फैसला जवाब देख कर ही लेंगे."


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