नई दिल्ली: क्या बिना किसी उचित जांच के देश में कोरोना के मरीजों को रेमेडीसिविर और फेवीपिराविर नाम की दवाएं दी जा रही हैं? आज सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया. याचिका में बताया गया था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) यह कह चुका है कि कोरोना के मरीजों को यह दवाई देना जरूरी नहीं है.
याचिकाकर्ता वकील मनोहर लाल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि रेमेडीसिविर और फेवीपिराविर को बनाने का लाइसेंस देश में किसी कंपनी के पास नहीं है. लेकिन 10 फार्मास्यूटिकल कंपनियां इनका निर्माण कर रही हैं. इन कंपनियों ने विदेशी कंपनियों के साथ समझौता किया है. मीडिया के जरिए इन दवाओं के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर प्रचारित किया जा रहा है. इस तरह से लोगों को ठगा जा रहा है. यह दोनों दवाएं दरअसल एंटीवायरल दवाएं हैं. इनका कोरोना के इलाज से कोई संबंध नहीं है. सरकारी अस्पतालों में तो यह मरीजों को मुफ्त में दी जाती हैं. लेकिन निजी अस्पतालों में इनकी कीमत हजारों रुपयों में वसूली जा रही है.
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा था कि सरकार ने इस तरफ से अपनी आंखें बंद कर रखी हैं. इसलिए, कोर्ट इन दवाओं पर रोक लगाए. लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रही कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाया जाए. पिछली सुनवाई में यह बात सामने आई थी कि सरकार ने इन दवाओं के इस्तेमाल की अनुमति दे रखी है.
आज याचिकाकर्ता ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट कोर्ट के सामने रखी. उन्होंने बताया कि यह रिपोर्ट साफ कहती है कि इन दोनों दवाइयों का कोरोना के मरीजों पर या तो बिल्कुल असर नहीं है, या न के बराबर असर है. कोरोना के मरीजों को यह दवाइयां देना जरूरी नहीं है. फिर भी भारत में लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हुए यह दवाएं दी जा रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने रिपोर्ट को गंभीर माना. जजों ने कहा, ''हम चाहते हैं कि इस बात को सरकार के संज्ञान में लाया जाए. इसलिए सरकार को नोटिस जारी कर रहे हैं. सरकार इस रिपोर्ट को देख कर जवाब दे कि इन दवाओं के इस्तेमाल पर उसके क्या विचार हैं?'' कोर्ट ने फिलहाल दवा कंपनियों को नोटिस जारी करने से मना कर दिया है.