नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने SC / ST एक्ट में किए गए संशोधन को वैध करार दिया है. 2018 में किए गए इस संशोधन के ज़रिए SC/ST एक्ट के मामलों में शिकायत मिलने पर तुरंत FIR दर्ज करने का प्रावधान जोड़ा गया था. साथ ही, आरोपी की गिरफ्तारी से पहले आला अधिकारियों की मंजूरी लेने की शर्त हटा दी गई थी.
कोर्ट ने फैसला देते हुए यह माना है कि भारत में सामाजिक असमानता की खाई अभी भी काफी बड़ी है. ऐसे में सामाजिक रूप से कमजोर तबकों को सम्मान दिलाने के लिए विशेष बंदोबस्त किए जाने जरूरी हैं. हालांकि, आज के फैसले में कोर्ट ने यह भी कहा है कि जब आरोप प्रथमदृष्टया गलत नज़र आ रहे हों तो हाई कोर्ट आरोपी को अग्रिम जमानत दे सकता है.
दरअसल, 2018 में यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट के ही एक फैसले के चलते लाना पड़ा था. उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी. जिसके व्यापक विरोध के बाद सरकार ने कानून में पुराने प्रावधानों को फिर से जोड़ा था.
क्या था कोर्ट का फैसला?
20 मार्च 2018 को दिए फैसले में कोर्ट ने माना था कि SC/ST एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी की व्यवस्था के चलते कई बार बेकसूर लोगों को जेल जाना पड़ता है. इससे बचाव की व्यवस्था करते हुए कोर्ट ने कहा था :-
* सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले विभाग के सक्षम अधिकारी की मंज़ूरी ज़रूरी होगी
* बाकी लोगों को गिरफ्तार करने के लिए ज़िले के SSP की इजाज़त ज़रूरी होगी
* DSP स्तर के अधिकारी प्राथमिक जांच करेंगे. अगर वाकई मामला बनता होगा, तभी मुकदमा दर्ज होगा
* जिसके खिलाफ शिकायत हुई है, वो अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है. अगर जज को पहली नज़र में मामला आधारहीन लगे, तो वो अग्रिम जमानत दे सकता है
सरकार ने क्या किया?
सरकार ने SC/ST एक्ट में संशोधन करते हुए नई धारा 18A जोड़ दी. इसे संसद के दोनों सदनों ने ध्वनिमत से पारित कर दिया. इस नई धारा में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने वाले प्रावधान थे. इसमें कहा गया था :-
* SC/ST उत्पीड़न से जुड़ी शिकायत पर गिरफ्तारी से पहले जांच अधिकारी को किसी से इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं है
* CrPC की धारा 438 यानी अग्रिम ज़मानत का प्रावधान इस एक्ट से जुड़े मामलों में लागू नहीं होगा
याचिकाकर्ताओं की दलील
याचिकाकर्ता पृथ्वीराज चौहान, प्रिया शर्मा और प्रदीप सिंगला ने कोर्ट से कहा कि सरकार की तरफ से कानून में हुए बदलाव के बाद सिर्फ शिकायत मिलने पर किसी को गिरफ्तार किया जा सकेगा. गिरफ्तारी से पहले इस बात की कोई जांच नहीं होगी कि आरोप सही है या गलत. ये संविधान के अनुच्छेद 14 (बराबरी का अधिकार) और 21 (सम्मान से जीने का अधिकार) के खिलाफ है.
केंद्र सरकार का जवाब
केंद्र की तरफ से एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल मामले में पेश हुए. उन्होंने कहा, "हज़ारों साल से वंचित तबके को अब जाकर सम्मान मिलना शुरू हुआ है. संसद और सरकार का कर्तव्य है कि इस तबके के सम्मान सुनिश्चित करे. अभी भी कुछ लोग हैं जो इस वर्ग के लिए दुर्भावना रखते हैं. यह ज़रूरी है कि ऐसे लोग ऐतिहासिक रूप से दबे-कुचले लोगों को परेशान करने से डरें. इसके लिए विशेष कानूनी प्रावधान ज़रूरी हैं.“
आज कोर्ट ने क्या फैसला दिया
आज दिए फैसले में कोर्ट ने साफ किया है कि SC/ST एक्ट के तहत मिलने वाली शिकायत चूंकि संज्ञेय अपराध की होती हैं, इसलिए FIR दर्ज करना पुलिस का फर्ज है. शिकायत बहुत ही असामान्य होने की स्थिति में FIR से पहले शुरुआती जांच की जा सकती है. कोर्ट ने कहा है कि बहुत ही विशेष परिस्थिति में FIR से पहले शुरुआती जांच की जो व्यवस्था ललिता कुमारी मामले में दी गई थी, वह अपनाई जा सकती है. लेकिन ऐसा हर शिकायत पर नहीं किया जा सकता.
कोर्ट ने यह भी कहा है कि आरोपी की गिरफ्तारी से पहले किसी की मंजूरी लेना जांच अधिकारी के लिए ज़रूरी नहीं है. अग्रिम जमानत का प्रावधान यानी CrPC 438 SC/ST एक्ट के मामलों में सामान्य रूप से लागू नहीं होगा. लेकिन अगर प्रथमदृष्टया ही आरोप गलत नज़र आ रहे हों तो हाई कोर्ट आरोपी को गिरफ्तारी से राहत देने पर विचार कर सकता है. लेकिन ऐसा उ चुनिंदा मामलों में ही किया जाए जब कोर्ट के पास आरोपो की सच्चाई पर शक करने की पर्याप्त वजह हो.
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