बेतुकी बातों पर वकीलों की हड़ताल पर SC सख्त, उत्तराखंड HC का फैसला बरकरार
सुप्रीम कोर्ट से पहले उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 25 सितंबर 2019 को दिए फैसले में वकीलों की हड़ताल को अवैध करार दिया था.
नई दिल्ली: पाकिस्तान के स्कूल में बम विस्फोट पर वकीलों की हड़ताल. श्रीलंका के संविधान में संशोधन के खिलाफ वकीलों की हड़ताल. नेपाल में भूकंप आने पर वकीलों की हड़ताल. हड़ताल की वजह तो आपने पढ़ ली, अब यह भी जान लीजिए कि वकील कहां के हैं? यह वकील पाकिस्तान, श्रीलंका या नेपाल के नहीं उत्तराखंड के हैं. पिछले 35 साल से उत्तराखंड के 3 जिलों के वकील अजीबोगरीब वजह बताकर हर शनिवार हड़ताल पर जाते रहे हैं. अब सुप्रीम कोर्ट ने इसे अवैध करार दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने माना हाई कोर्ट का फैसला सही
सुप्रीम कोर्ट से पहले उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 25 सितंबर 2019 को दिए फैसले में वकीलों की हड़ताल को अवैध कहा था. आज सुप्रीम कोर्ट ने इसके खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाई कोर्ट का फैसला बिल्कुल सही है. इसे निरस्त करने का कोई आधार नहीं है. वकीलों का हड़ताल जारी रखना कोर्ट की अवमानना है. उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए.
उत्तराखंड के तीन जिलों- देहरादून, उधम सिंह नगर और हरिद्वार के वकील सिर्फ पाकिस्तान, श्रीलंका या नेपाल में हो रही घटनाओं के चलते हड़ताल नहीं करते रहे हैं. बल्कि किसी वकील के रिश्तेदार की मौत पर सभी वकील शोक में हड़ताल का ऐलान कर देते हैं. कभी कवि सम्मेलन करवाने के नाम पर हड़ताल की जाती है. कभी देश के किसी हिस्से में ज्यादा बारिश से हुई तबाही को आधार बनाकर हड़ताल कर दी जाती है.
क्या कहा गया है याचिका में?
हाईकोर्ट में इसे चुनौती देने वाले देहरादून के ईश्वर शांडिल्य का कहना था कि वकीलों ने शनिवार को छुट्टी का दिन मान लिया है. वह कभी भी शनिवार को काम नहीं करते हैं. अदालतें बैठती हैं, लेकिन वकील के न होने के चलते सुनवाई टाल दी जाती है. इससे दूरदराज से अपने मुकदमों की पैरवी के लिए पहुंचने वाले लोगों को भारी तकलीफ होती है. अदालत का भी एक पूरा दिन बर्बाद होता है.
इस मामले में हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए लॉ कमीशन की 266वीं रिपोर्ट का हवाला दिया था, जिसमें वकीलों की हड़ताल को गैरकानूनी करार देने की बात कही गई थी. हाई कोर्ट ने फैसले में लिखा, ''वकील 35 साल से हर शनिवार कार्य बहिष्कार कर रहे हैं. इसके अलावा भी कभी भी, किसी भी वजह से हड़ताल का ऐलान कर दिया जाता. है. सिर्फ 2012 से 2016 के बीच देहरादून जिले में 455 दिनों तक वकीलों ने काम नहीं किया है. हरिद्वार में इस दौरान 515 दिनों तक वकीलों ने काम नहीं किया. इससे होने वाले अदालती कामकाज के नुकसान का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है.''
हाईकोर्ट ने राज्य में वकीलों की हड़ताल को अवैध करार दिया
हाईकोर्ट ने पूरे राज्य में वकीलों की हड़ताल को अवैध करार दिया था. साथ ही कहा था कि निचली अदालत के जज वकीलों के कार्य बहिष्कार के ऐलान के चलते मामले की सुनवाई ना टालें. अगर वकील मौजूद नहीं है, तब भी अदालती कार्रवाई को आगे बढ़ाया जाए. ऐसा ना करने वाले जजों पर भी कार्रवाई की जाएगी. पुलिस अदालतों को पूरी सुरक्षा दे ताकि कोई वकील हड़ताल के नाम पर अदालती कामकाज में बाधा न डाल सके. उत्तराखंड राज्य बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया हड़ताल करने वाले वकीलों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करें. इस आदेश का पालन न किए जाने को हाई कोर्ट की अवमानना माना जाएगा.
वकीलों का हड़ताल पर जाना अदालत की अवमानना
इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील पर सुनवाई के दौरान जस्टिस अरुण मिश्रा और एमआर शाह की बेंच में कड़ा रवैया अपनाया था. बेंच ने टिप्पणी की थी, “क्या आप मजाक कर रहे हैं? एक वकील के परिवार में किसी की मौत हो जाए तो सभी वकील उस दिन काम नहीं करेंगे? यह किस तरह की स्थिति बना दी गई है? इसे बिल्कुल स्वीकार नहीं किया जा सकता है. हर कोई हड़ताल पर चला जा रहा है. पूरी व्यवस्था चरमरा गई है. अब हमें सख्त होना ही पड़ेगा.“
आज दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को सही करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वकीलों का हड़ताल पर जाना अदालत की अवमानना मानी जाएगी. वकीलों की अनुशासनात्मक संस्था बार काउंसिल इस तरह के वकीलों के खिलाफ जरूरी कार्रवाई करे.
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