Talaq-E-Hasan: तलाक-ए-हसन (talaq-e-hasan) पीड़िता बेनज़ीर हिना (Benazir Hina) की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) शुक्रवार, 22 जुलाई को सुनवाई करेगा. बेनज़ीर की तरफ से वरिष्ठ वकील पिंकी आनंद (Pinky Anand) ने कोर्ट को बताया कि उन्हें तलाक के 3 नोटिस मिल चुके हैं. इस तरह प्रक्रिया पूरी हो गई है. उन्होंने मई में याचिका दाखिल की थी लेकिन उसे अब तक सुना नहीं गया है. वकील ने कोर्ट को यह भी बताया कि बेनज़ीर का एक 8 महीने का बेटा है. मामले को जल्द सुनने का आग्रह स्वीकार करते हुए चीफ जस्टिस एन वी रमना ने उसे 4 दिन बाद सुनवाई के लिए लगाने की बात कही.


मुस्लिम पुरुषों को तलाक का एकतरफा अधिकार देने वाले तलाक-ए-हसन और दूसरे प्रावधानों को चुनौती देने वाली यह याचिका 2 मई को दाखिल हुई थी. तब तक पति से तलाक का पहला नोटिस पा चुकी हिना ने कोर्ट से इस प्रक्रिया को रोकने का अनुरोध किया था. साथ ही, यह मांग भी रखी थी कि मुस्लिम लड़कियों को तलाक के मामले में बाकी लड़कियों जैसे अधिकार मिलने चाहिए. याचिकाकर्ता के वकील के कई बार प्रयास के बावजूद अब तक यह मामला सुनवाई के लिए नहीं लग पाया था. अब चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनवाई की बात कही है.


सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ तलाक-ए-बिद्दत पर लगाई थी रोक


22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ 3 तलाक बोल कर शादी रद्द करने को असंवैधानिक करार दिया था. तलाक-ए-बिद्दत कही जाने वाली इस व्यवस्था को लेकर अधिकतर मुस्लिम उलेमाओं का भी मानना था कि यह कुरान के मुताबिक नहीं है. कोर्ट के फैसले के बाद सरकार एक साथ 3 तलाक बोलने को अपराध घोषित करने वाला कानून भी बना चुकी है. लेकिन तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-अहसन जैसी व्यवस्थाएं अब भी बरकरार हैं. इनके तहत पति 1-1 महीने के अंतर पर 3 बार लिखित या मौखिक रूप से तलाक बोल कर शादी रद्द कर सकता है.


याचिकाकर्ता ने क्या कहा है?


वकील अश्विनी उपाध्याय के ज़रिए दाखिल याचिका में बेनज़ीर ने बताया है कि उनकी 2020 में दिल्ली के रहने वाले यूसुफ नक़ी से शादी हुई. उनका 7 महीने का बच्चा भी है. पिछले साल दिसंबर में पति ने एक घरेलू विवाद के बाद उन्हें घर से बाहर कर दिया. पिछले 5 महीने से उनसे कोई संपर्क नहीं रखा. अब अचानक अपने वकील के ज़रिए डाक से एक चिट्ठी भेज दी है. इसमें कहा है कि वह तलाक-ए-हसन के तहत पहला तलाक दे रहे हैं.


याचिका दाखिल करने के बाद बेनज़ीर हिना ने एबीपी न्यूज़ से बात की थी. उन्होंने कहा था कि जो अधिकार संविधान उनकी हिंदू, सिख या ईसाई सहेलियों को देता है उससे वह वंचित हैं. अगर उन्हें भी कानून का समान संरक्षण हासिल होता तो उनके पति इस तरह एकतरफा तलाक नहीं दे सकते थे. बेनज़ीर ने कहा था कि वह सिर्फ अपनी नहीं देश की करोड़ों मुस्लिम लड़कियों की लड़ाई लड़ रही हैं. ऐसी लड़कियां दूरदराज के शहरों और गांवों में हैं. वह पुरुषों को हासिल विशेष अधिकारों से पीड़ित तो हैं लेकिन इसे अपनी नियति मान कर चुप हैं.


याचिका में रखी गई मांग


याचिका में मांग कहा गया है कि धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर मुस्लिम महिलाओं को कानून की नज़र में समानता (अनुच्छेद 14) और सम्मान से जीवन जीने (अनुच्छेद 21) जैसे मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं रखा है सकता. इसलिए, सुप्रीम कोर्ट तलाक-ए-हसन और अदालती तरीके से न होने वाले दूसरे सभी किस्म के तलाक को असंवैधानिक करार दे. शरीयत एप्लिकेशन एक्ट, 1937 की धारा 2 रद्द करने का आदेश दे. साथ ही डिसॉल्युशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट, 1939 को पूरी तरह निरस्त करने का आदेश दे.


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