राफेल पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज, डील रद्द करने से लेकर जांच तक की है मांग
सुनवाई के दौरान सरकार ने सौदे के फैसले को बिल्कुल साफ सुथरा बताया. विमानों की कीमत की जानकारी भी कोर्ट को सीलबंद लिफाफे में मुहैया करवाई.
नई दिल्लीः भारत और फ्रांस के बीच हुए राफेल सौदे पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला देगा. याचिकाओं में खरीद प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की गई है. सुनवाई के दौरान सरकार ने सौदे के फैसले को बिल्कुल साफ सुथरा बताया. विमानों की कीमत की जानकारी भी कोर्ट को सीलबंद लिफाफे में मुहैया करवाई.
याचिकाओं में रखे गए मुद्दे कोर्ट में वकील एम एल शर्मा, विनीत ढांडा, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, वकील प्रशांत भूषण और आप सांसद संजय सिंह ने याचिकाएं दाखिल की. सबने विमान सौदे में कमियां गिनाईं, तय प्रक्रिया का पालन न करने, पारदर्शिता की कमी, ज़्यादा कीमत देकर कम विमान लेने जैसे सवाल उठाए और भ्रष्टाचार का भी अंदेशा जताया. खास तौर पर भारत में फ्रेंच कंपनी दसॉल्ट का ऑफसेट पार्टनर रिलायंस को बनाए जाने पर सवाल उठाए गए. कहा गया कि सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को दरकिनार कर रिलायंस को फायदा पहुंचाने के लिए पहले से चल रही डील को रद्द कर नया समझौता किया गया.
- वकील एम एल शर्मा ने डील रद्द करने की मांग की
- यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, प्रशांत भूषण ने कहा कि कोर्ट CBI को FIR दर्ज करने का आदेश दे
- संजय सिंह ने कीमत पर सवाल उठाए. सरकार पर संसद और कोर्ट को गुमराह करने का आरोप लगाया
कोर्ट ने क्या किया मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, संजय किशन कौल और के एम जोसफ की बेंच ने की. बेंच ने साफ किया कि वो विमान की तकनीकी दक्षता पर सुनवाई नहीं करेगा. कीमत को लेकर उठ रहे सवालों के बीच कोर्ट ने सरकार से कीमत का ब्यौरा सीलबंद लिफाफे में सौंपने को कहा. उसे जजों ने देखा. कोर्ट में चर्चा नहीं हुई.
कोर्ट ने सभी पक्षों को दलील रखने का पूरा मौका दिया. 2011 से चल रही 126 विमानों की बातचीत को रद्द कर सिर्फ 36 विमान खरीदने पर सरकार से सफाई मांगी. ये पूछा कि 10 अप्रैल 2015 में जब पीएम के फ्रांस दौरे के वक्त नए समझौते का ऐलान हुआ तो क्या कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी और डिफेंस एक्वीजिशन काउंसिल को भरोसे में लिया गया. कोर्ट ने ऑफसेट पार्टनर के चयन में सरकार की भूमिका पर जवाब मांगा.
इसके अलावा कोर्ट ने वायुसेना के आला अधिकारियों को बुला कर राफेल विमानों की ज़रूरत समझने की कोशिश की. 14 नवंबर को कोर्ट में एयर मार्शल वी आर चौधरी, एयर मार्शल अनिल खोसला और एयर वाइस मार्शल के चलपति पेश हुए. उन्होंने कोर्ट को बताया कि फिलहाल भारत मे तकनीकी लिहाज़ से किस पीढ़ी के विमान मौजूद हैं. कोर्ट ने ये भी पूछा कि HAL किस तरह के विमान बना रहा है.
सरकार का जवाब केंद्र की तरफ से एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने देशहित का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि सौदे के सभी पहलुओं पर चर्चा नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा कि सभी याचिकाएं मीडिया की रिपोर्टिंग के आधार पर दाखिल कर दी गई हैं. इनमें बार-बार कीमत को लेकर सवाल उठाए गए हैं. इन सवालों के जवाब दिए गए तो इससे भारत के शत्रु देश विमान की बारीकियों के बारे में जान जाएंगे.
एटॉर्नी जनरल ने कहा कि 2011 से चल रही 126 विमानों की बातचीत 3 साल तक अटकी रही. क्योंकि ऑफसेट पार्टनर के तौर पर चुनी गई सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड दसॉल्ट की शर्तों के मुताबिक काम करने में सक्षम नहीं थी. इस बीच भारत के प्रतिद्वंद्वी पड़ोसी देशों ने 400 से ज़्यादा आधुनिक विमान अपने बेड़े में शामिल कर लिए. आखिरकार 2015 में समझौते को रद्द करना पड़ा. भारत अपनी रक्षा जरूरत के हिसाब से काफी पिछड़ता चला जा रहा था. इसलिए, प्रक्रिया को दोबारा शुरू किया गया. अप्रैल 2015 में भारत और फ्रांस की सरकार ने 36 रफाल की खरीद के लिए समझौता किया. ये समझौता देश हित मे है क्योंकि ये सीधे 2 सरकारों के बीच हुआ है. फ्रांस सरकार ये सुनिश्चित करेगी कि भारत को समय पर सही विमान मिले.
सरकार की तरफ से ये भी कहा गया कि ऑफसेट पार्टनर का चयन फ्रांस की विमान निर्माता कंपनी ने अपनी तरफ से किया है. सरकार की भूमिका सिर्फ ये देखने तक सीमित है कि जिस कंपनी को ऑफसेट पार्टनर चुना गया है, वो इसके लिए तय शर्तों को पूरा करती है या नहीं.
राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को बचपन में जादू दिखाया करते थे अशोक गहलोत