राफेल मामले में 'गोपनीय' दस्तावेज भी देखेगा SC, सरकार की आपत्ति खारिज
आज दिए फैसले में कोर्ट ने सरकार के एतराज़ को खारिज कर दिया है. इसका मतलब ये है कि अब जब पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई होगी तो गोपनीय दस्तावेजों में दर्ज बातों पर भी चर्चा होगी और सरकार को उन पर भी सफाई देनी होगी.
नई दिल्लीः राफेल मामले में केंद्र को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है. कोर्ट पुनर्विचार याचिका की सुनवाई में उन दस्तावेजों को भी देखेगा जिन्हें केंद्र ने गोपनीय बता कर पेश किए जाने पर एतराज़ किया था. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस बारे में सरकार की आपत्ति को खारिज कर दिया है.
14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने भारत और फ्रांस के बीच हुए लड़ाकू विमान खरीद के समझौते को सही ठहराया था. इस सौदे में प्रक्रिया के उल्लंघन और भ्रष्टाचार का आरोप लगाने वाली याचिकाओं को खारिज किया था. बाद में याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की. तय प्रक्रिया के तहत फैसला देने वाले तीनों जजों ने अर्ज़ी पर बंद कमरे में विचार किया. 26 फरवरी को उन्होंने तय किया कि इस पर खुली अदालत में सुनवाई होगी.
इस बीच कई ऐसे दस्तावेज 'द हिंदू' अखबार में छपे, जिन पर मुख्य मामले की सुनवाई के दौरान चर्चा नहीं हुई थी. न ही ये दस्तावेज मूल पुनर्विचार याचिका का हिस्सा थे. इनमें विमान सौदे में प्रधानमंत्री कार्यालय की सक्रिय भूमिका और उस पर रक्षा मंत्रालय के एतराज़ की बातें दर्ज थीं. प्रशांत भूषण ने अलग से अर्ज़ी दाखिल कर ये दस्तावेज भी कोर्ट में जमा करवा दिए.
जब पुनर्विचार याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई हुई तो एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इसका विरोध किया. उन्होंने कहा कि ये दस्तावेज रक्षा मंत्रालय से अवैध तरीके से हासिल किए गए हैं. ये बिल्कुल गोपनीय दस्तावेज हैं, जिन पर सरकार का विशेषाधिकार है. आधिकारिक मंजूरी के बिना इन्हें कोर्ट में नहीं रखा जा सकता. ये भारतीय साक्ष्य कानून की धारा 123 के खिलाफ है. दस्तावेज दो देशों के बीच हुए समझौते और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हैं. इस तरह के दस्तावेज हासिल करने पर सूचना अधिकार कानून की धारा 8(1)(a) में भी मनाही है.
इसके विरोध में याचिकाकर्ता की तरफ से दलील दी गई कि साक्ष्य कानून में 'अप्रकाशित' कागज़ात कोर्ट में रखने की मनाही है. दस्तावेज पहले ही मीडिया में छप चुके हैं. सब इनके बारे में जानते हैं. इसलिए, सरकार का विरोध निराधार है. मामला जनहित का है. कोर्ट को इसके सभी पहलुओं को देखना चाहिए.
आज दिए फैसले में कोर्ट ने सरकार के एतराज़ को खारिज कर दिया है. इसका मतलब ये है कि अब जब पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई होगी तो इन दस्तावेजों में दर्ज बातों पर भी चर्चा होगी और सरकार को उन पर भी सफाई देनी होगी.
वैसे पहले हुई बहस के दौरान एटॉर्नी जनरल ये दलील दे चुके हैं कि याचिकाकर्ता दस्तावेजों को अपनी सुविधा के मुताबिक तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहे हैं. इनमें दर्ज बातों और मुख्य मामले की सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से रखी गई बातों में कोई विरोधाभास नहीं है. अब सरकार को ये साबित करना होगा कि वाकई ऐसा ही है.
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