Global Warming Issue: ग्लोबल वॉर्मिंग से पूरी दुनिया पर खतरा बढ़ता जा रहा है. ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण ही बार-बार बाढ़, चक्रवात और मौसम में परिवर्तन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. मानव सभ्यता पर बढ़ते खतरे को लेकर भारत भी चिंतित है. गुरुवार (15 दिसंबर) को राज्यसभा में ग्लोबल वॉर्मिंग पर चर्चा हुई. ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के बढ़ते दुष्प्रभावों को लेकर विभिन्न दलों के सदस्यों ने चिंता जताई. 


सत्तापक्ष और विपक्ष के सदस्यों ने इस मुद्दे पर एकजुटता दिखाई. ग्लोबल वॉर्मिंग के मुद्दे पर सभी सदस्यों ने इस बात पर सहमति जताई कि इससे निपटने का दायित्व अकेले सरकार पर नहीं डाला जा सकता और समाज के हर सदस्य को अपनी जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी. राज्यसभा में इस मुद्दे को DMK सांसद तिरुचि शिवा, कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी और CPI के सांसद पी संदोष कुमार की ओर से उठाया गया था. 


ग्लोबल वॉर्मिंग पर पूरे विश्व को खतरा


डीएमके सांसद तिरुचि शिवा ने कहा, "यह ऐसी समस्या है जिससे पूरे विश्व के लिए खतरा पैदा हो गया है. पूरे सदन को न केवल भविष्य बल्कि वर्तमान को लेकर भी चिंता है. सरकार का यह लक्ष्य है कि 2070 तक कार्बन उत्सर्जन शून्य प्रतिशत करना है. यह बहुत लंबा लक्ष्य है और देश को अभी के बारे में सोचना होगा. सरकार को 2040 के बारे में सोचना चाहिए."


सिर्फ सरकार जिम्मेदार नहीं- DMK सांसद


DMK सांसद ने कहा, "आज हम देख रहे हैं कि जंगल लुप्त हो रहे हैं, नदियां सूख रही हैं, समुद्र तट गायब हो रहे हैं. यह सब बहुत चिंताजनक है? बार बार चक्रवात आ रहे हैं, उपजाऊ भूमि बंजर हो रही है. ऐसे में हम अनाज के लिए कहां जाएंगे? इन सब के लिए सरकार या पर्यावरण मंत्री को जिम्मेदार नहीं ठहरा रहे हैं. इस समस्या से निपटने का दायित्व समाज के प्रत्येक सदस्य का है. यह ऐसी समस्या है जिससे पूरे विश्व के लिए खतरा पैदा हो गया है. पूरे सदन को न केवल भविष्य बल्कि वर्तमान को लेकर भी चिंता है."


पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर चिंता जताई


बीजेपी सांसद की कविता पाटीदार ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई. उन्होंने कहा, "पृथ्वी के ध्रुवों पर हजारों साल से जमी बर्फ तेजी से पिघल रही है. इसकी वजह से बार-बार बाढ़ और तूफान आ रहे हैं. मनुष्य की गतिविधियों के परिणामस्वरूप कार्बन डाईआक्साइड और मीथेन जैसी गैसों का उत्सर्जन अधिक बढ़ा, जिसने सूरज की गर्मी को अधिक सोखा. इससे पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है." उन्होंने कहा, "पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण ऑक्सीजन की कमी हो रही है. इस बात को लोगों ने कोरोना महामारी के दौरान महसूस किया जब ऑक्सीजन एक बहुत बड़ी जरूरत बन गई."


2050 तक मुम्बई को निगल जाएगा समंदर!


यूनाइटेड नेशन की संस्था IPCC की एक रिपोर्ट की माने तो साल 2050 तक मुम्बई के ज्यादातर हिस्सों को समुंदर निगल सकता है. मरीन ड्राइव से लेकर जुहू चौपाटी तक बने बड़े-बड़े 5 सितारा होटल और कॉरपोरेट ऑफिस समुंदर में हमेशा के लिए विसर्जित हो जाएंगे. RMSI नाम की संस्था ने अपनी रिपोर्ट में भी इसी बात का जिक्र किया. RMSI के मुताबिक, साल 2050 तक मुम्बई के कई आइकोनिक ठिकाने समुंदर में समा जाएंगे.


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