The Purity of Races: भारतीयों की नस्लीय शुद्धता (Racial Purity Of Indians) के अध्ययन को लेकर देश में बहस छिड़ चुकी है. इस मामले पर देश के वैज्ञानिकों (Scientists), इतिहासकारों (Historian), लेखक (Writers) और पूर्व नौकरशाहों ने आपत्ति जताई है. इन लोगों ने संस्कृति मंत्रालय (Ministry Of Culture) को एक पत्र लिखकर चिंता व्यक्त की है. इस पत्र में इन लोगों ने कहा है कि नस्लीय शुद्धता (Racial Purity) का पता लगाने वाली धारणा चाहे वो भारत (India) में हो या कहीं और ये बेहद चिंताजनक है. इस तरह की योजना बेहद खतरनाक और बेतुकी है.
संस्कृति मंत्रालय को लिखे गए इस पत्र पर 122 लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं जिसमें वैज्ञानिक, इतिहासकार, लेखक और पूर्व नौकरशाह शामिल हैं. इन लोगों ने इस पत्र में कहा है कि नस्लीय शुद्धता का पता लगाना बेतुकी धारणा है क्योंकि जैविक शुद्धता की अवधारणा को बहुत पहले ही खारिज किया जा चुका है.
इन लोगों ने हस्ताक्षर कर लिखा पत्र
जिन लोगों ने नस्लीय शुद्धता के अध्ययन को लेकर आपत्ति जताने वाला पत्र संस्कृति मंत्रालय को लिखा है उनके नाम आनुवंशिकीविद् और सांख्यिकीविद् पार्थ पी मजूमदार, जीवविज्ञानी अमिताभ जोशी, एलएस शशिधर, सत्यजीत मेयर, राघवेंद्र गडगकर, इतिहासकार रोमिला थापर और रामचंद्र गुहा हैं.
नस्लीय शुद्धता पर क्यों हो रही है चर्चा
दरअसल एक हफ्ते पहले एक मशहूर अखबार में खबर छपी थी कि संस्कृति मंत्रालय भारत में आनुवंशिक इतिहास और नस्लों की शुद्धता का पता लगाने के लिए डीएनए प्रोफाइलिंग किट और इससे संबंधित मशीन हासिल करने की कोशिश में है. इस लेख में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज के प्रोफेसर वसंत शिंदे के हवाले से कहा गया था कि हम ये देखना चाहते हैं कि पिछले 10 हजार सालों में भारतीय आबादी में जीनों का उत्सर्जन और मिश्रण कैसे हुआ. आप ये भी कह सकते हैं कि ये भारत में नस्लों की शुद्धता का पता लगाना का एक प्रयास होगा.
संस्कृति मंत्रालय ने इस दावे को किया खारिज
संस्कृति मंत्रालय (Ministry Of Culture) ने इस रिपोर्ट (Report) को सिरे से खारिज कर दिया और इसे भ्रामक, शरारती और तथ्यों के विपरीत करार दिया. परियोजना को और स्पष्ट करते हुए मंत्रालय (Ministry) ने कहा कि संस्कृति मंत्रालय को कुछ चल रही परियोजनाओं (Proposals) के लिए कोलकाता (Kolkata) में मौजूदा डीएनए लैब (DNA Lab) को अगली पीढ़ी की अनुक्रमण सुविधाओं में अपग्रेड करने के लिए भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (ANSI) से एक प्रस्ताव मिला है. ये प्रस्ताव किसी भी तरह से आनुवंशिक इतिहास (Genetic History) की स्थापना और भारत में नस्लों की शुद्धता का पता लगाने से संबंधित नहीं है जैसा कि लेख में बताया जा रहा है. मंत्रालय ने कहा कि फिलहाल प्रस्ताव की गुण-दोष के आधार पर जांच की जा रही है. इसके अलावा शिंदे ने भी इस रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं.
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