कैसे हुई थी जीवन की शुरुआत? समुद्र की गहराई में जाकर जवाब तलाशेंगे भारतीय साइंटिस्ट
शुरुआत में 4,077 करोड़ रुपये की लागत वाले इस अभियान के तहत वैज्ञानिक 500 मीटर की गहराई में जाकर उन उपकरणों का परीक्षण करेंगे, जिन्हें इस उद्देश्य के लिए बनाया गया है.
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भारतीय वैज्ञानिक जल्द ही 'गहरा महासागर अभियान' (डीओएम) के तहत समुद्र की सतह से 6,000 मीटर तक की गहराई में जाकर जीवन की उत्पत्ति के रहस्यों का पता लगाने वाले हैं. शुरुआत में 4,077 करोड़ रुपये की लागत वाले इस अभियान के तहत वैज्ञानिक 500 मीटर की गहराई में जाकर उन उपकरणों का परीक्षण करेंगे, जिन्हें इस उद्देश्य के लिए बनाया गया है. इसके बाद वे महासागर में और गहराई में जाएंगे.
'जीवन की उत्पत्ति से जुड़े कुछ रहस्य अब भी बरकरार हैं'
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम रविचंद्रन ने कहा, "जीवन की उत्पत्ति से जुड़े कुछ रहस्य अब भी बरकरार हैं. ऐसे सिद्धांत हैं कि जीवन का उद्भव, महासागर में चार से पांच किलोमीटर की गहराई में स्थित 'हाइड्रो थर्मल वेंट' में हुआ था." उन्होंने कहा, "चार से पांच किलोमीटर की गहराई में पूरा अंधेरा होता है, लेकिन वहां भी जीवन मौजूद है. उस गहराई में जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई होगी, कोई जीव वहां कैसे जीवित रहा होगा? गहरे महासागर अभियान से हमें इसका पता लगाने में सहायता मिलेगी." रविचंद्रन ने बताया कि डीओएम की सहायता से भारत को महासागर के तल का मानचित्र बनाने में भी सहायता मिलेगी, जहां खनिज और धातु का भंडार है.
'समुद्रयान अभियान' के लिए 'मत्स्य 6000' सबमर्सिबल वाहन
वहीं, स्वदेश में निर्मित 'मत्स्य 6000' सबमर्सिबल वाहन 2024 में प्रस्तावित 'समुद्रयान अभियान' के लिए तैयार हो जाएगा. यह वाहन स्वदेश में निर्मित है और तीन मानवों को समुद्र के भीतर छह हजार मीटर की गहराई तक ले जाने में सक्षम है. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की 'डीप ओशन मिशन' परियोजना के तहत 'मत्स्य 6000' को एनआईओटी द्वारा विकसित किया जा रहा है. इसके 2.1 मीटर व्यास वाले टाइटेनियम मिश्रधातु से बने हिस्से में तीन व्यक्ति जा सकते हैं. यह वाहन एक बार में 12 घंटे तक काम कर सकता है और आपातकालीन स्थिति में 96 घंटे तक गहरे समुद्र में रह सकता है. इसकी सहायता से समुद्र के गर्भ में एक हजार से डेढ़ हजार मीटर की गहराई में संसाधनों की खोज की जा सकती है.
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