नई दिल्लीः एससी/ एसटी एक्ट में अग्रिम ज़मानत की इजाज़त देने वाले फैसले में दखल देने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की बेंच ने एससी/ एसटी एक्ट को रिव्यू करते हुए कहा था कि अगर केस पहली नज़र में निराधार या गलत इरादे से दाखिल लगता है तो आरोपी को अग्रिम ज़मानत मिल सकती है.
अब इस फैसले के बाद गुजरात हाई कोर्ट ने एक बिल्डर को अग्रिम जमानत दी. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने इस ज़मानत को चुनौती देने वाली अर्ज़ी पर सुनवाई की बात कही लेकिन मुख्य फैसले पर दखल देने से फिलहाल मना कर दिया है.
क्या है इस एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
अनुसूचित जाति/जनजाति उत्पीड़न एक्ट के तहत अब तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश दिया है. कोर्ट ने इस एक्ट के तहत आने वाली शिकायतों पर शुरुआती जांच के बाद ही मामला दर्ज करने का भी आदेश दिया है.
अगर किसी के खिलाफ एससी/एसटी उत्पीड़न का मामला दर्ज होता है, तो वो अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकेगा. अगर कोर्ट को पहली नज़र में लगता है कि मामला आधारहीन है या गलत नीयत से दर्ज कराया गया है, तो वो अग्रिम जमानत दे सकता है.
सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग की आशंका के मद्देनजर उनकी गिरफ्तारी से पहले उनके विभाग के सक्षम अधिकारी की मंज़ूरी ज़रूरी होगी. बाकी लोगों को गिरफ्तार करने के लिए ज़िले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) की इजाज़त ज़रूरी होगी. इस एक्ट के तहत शिकायत मिलने पर DSP स्तर के अधिकारी प्राथमिक जांच करेंगे. वो ये देखेंगे कि मामला वाकई बनता है या सिर्फ फंसाने की नीयत से शिकायत की गई है. इसके बाद ही मुकदमा दर्ज होगा