धारा 377: सुप्रीम कोर्ट आज तय करेगा समलैंगिक संबंध अपराध है या नहीं?
Section 377 Verdict: दिल्ली हाई कोर्ट ने 2009 में दो एडल्ट के बीच आपसी रजामंदी से एकांत में बने समलैंगिक संबंध को अपराध मानने से मना कर दिया था.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ आज समलैंगिक यौन संबंध पर फैसला सुनाएगी. इस तरह के संबंधों को आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध माना गया है. कोर्ट में दायर याचिकाओं में इसे चुनौती दी गयी थी.
क्या है धारा 377? आईपीसी की धारा 377 अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध मानती है. इसके तहत पशुओं के साथ ही नहीं बल्कि दो लोगों के बीच बने समलैंगिक संबंध को भी अप्राकृतिक कहा गया है. इसके लिए 10 साल तक की सज़ा का प्रावधान है.
पहले सुप्रीम कोर्ट ने दखल से मना किया था दिल्ली हाई कोर्ट ने 2009 में दो एडल्ट के बीच आपसी रजामंदी से एकांत में बने समलैंगिक संबंध को अपराध मानने से मना कर दिया था. लेकिन साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने कानून में बदलाव को संसद का अधिकार बता कर मामले में दखल देने से मना कर दिया. इसकी वजह से 2009 में आया दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला निरस्त हो गया था.
मामला दोबारा कोर्ट पहुंचा सुप्रीम कोर्ट ने 5 समलैंगिक लोगों ने याचिका दाखिल कर मामले पर नए सिरे से सुनवाई की मांग की. इस साल जनवरी में कोर्ट ने इस मसले को संविधान पीठ में भेज दिया. बाद में कुछ और लोगों ने भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. संविधान पीठ ने सभी पक्षों को विस्तार से सुना और 17 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया.
कोर्ट में क्या कहा गया याचिकाकर्ताओं ने निजता को मौलिक अधिकार बताने वाले फैसले का हवाला दिया. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि निजता एक मौलिक अधिकार है, लेकिन समलैंगिक लोगों को ये अधिकार हासिल नहीं है. वो अपनी प्राकृतिक जरूरत को पूरा करने में डरते हैं. उन्हें पुलिस और कानूनी कार्रवाई का डर सताता है. पुलिस समलैंगिकों को कानून की आड़ में परेशान करती है.
याचिकाकर्ताओं ने ये भी कहा कि पुलिस के डर से समलैंगिक सामने नहीं आते. इससे उनके बीच एड्स को लेकर जागरुकता फैलाना मुश्किल होता है. 150 साल पुराना ये कानून अंग्रेजों का बनाया हुआ है. उन्होंने उस ज़माने में इंग्लैंड में चल रही व्यवस्था के हिसाब से समलैंगिकता के लिए कड़ी सज़ा का प्रावधान किया. अब इसे खत्म करने की जरूरत है.
सरकार ने नहीं लिया कोई स्टैंड कुछ धार्मिक संगठनों ने धर्म और सामाजिक मान्यताओं का हवाला देते हुए याचिका का विरोध किया. लेकिन केंद्र सरकार ने मसले पर कोई स्टैंड नहीं लिया. सरकार ने कहा कि वो इस मसले को कोर्ट के विवेक पर छोड़ती है. सरकार ने सिर्फ इतना आग्रह किया कि कोर्ट अपनी सुनवाई 2 एडल्ट्स के बीच आपसी सहमति से बने संबंधो तक सीमित रखे. पूरी धारा 377 की वैधता पर सुनवाई न हो.
कोर्ट ने क्या कहा चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, "ये मामला लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ा है. समाज के रुख में बदलाव के साथ ही कानून भी बदलते हैं. ये देखना जरूरी है कि कहीं एक तबका बेवजह डर में तो नहीं जी रहा."
हालांकि, कोर्ट ने ये साफ कर दिया था कि वो पशुओं के साथ संबंध बनाने या बच्चों के साथ रेप को अपराध के दायरे से बाहर करने पर कोई विचार नहीं करेगा. कोर्ट ने ये भी कहा कि फिलहाल समलैंगिक विवाह जैसा मसला उसके विचार के दायरे में नहीं है.