Sedition Law: कोर्ट ने आज राजद्रोह कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार से सवाल किया कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी जैसे लोगों को ‘‘चुप’’ कराने के लिए इस्तेमाल होने वाले कानून के प्रावधान को समाप्त क्यों नहीं किया जा रहा है. शीर्ष अदालत की टिप्पणी के बाद राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा कि हम उच्चतम न्यायालय की इस टिप्पणी का हम स्वागत करते हैं.


आज चीफ जस्टिस एन वी रमण, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक पूर्व मेजर जनरल और ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ की याचिकाओं पर गौर करने पर सहमति जताते हुए कहा कि उसकी मुख्य चिंता ‘‘कानून का दुरुपयोग’’ है.


पीठ ने मामले में केंद्र को नोटिस जारी किया. जस्टिस ए एस बोपन्ना और ऋषिकेश रॉय के साथ बेंच में बैठे चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की, "किसी राज्य में सत्ताधारी पार्टी अपने विरोधियों के ऊपर यह धारा लगवा देती है. इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा 66A का भी इसी तरह दुरुपयोग हो रहा था. इस कानून को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से असंवैधानिक करार देने के बाद भी पुलिस लोगों को गिरफ्तार करती रही है. राजद्रोह की धारा भी इसी तरह लगाई जाती है कि किसी को परेशान किया जा सके. अधिकतर लोग बाद में बरी हो जाते हैं. लेकिन गलत तरीके से धारा लगाने वाले पुलिस अधिकारी की कोई जवाबदेही तय नहीं की जाती."


चीफ जस्टिस ने आगे कहा, "यह कानून ऐसा है जैसे किसी बढ़ई को लकड़ी का एक टुकड़ा काटने के लिऐ आरी दी गई और वह पूरा जंगल काटने लग गया. सरकार कई पुराने कानूनों को खत्म कर रही है. राजद्रोह कानून पर अब तक उसका ध्यान क्यों नहीं गया?" 


एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कोर्ट की चिंता से सहमति जताते हुए कहा, "निश्चित रूप से इस कानून के दुरुपयोग पर रोक लगनी चाहिए. इसे सिर्फ देश की सुरक्षा और लोकतांत्रिक संस्थाओं को सीधे आघात पहुंचाने के मामलों तक सीमित रखने की ज़रूरत है."


राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट का सवाल- जो धारा स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ अंग्रेजों ने लगाई, उसे अब भी बनाए रखने की क्या जरूरत?