Supreme Court on Sedition Law: सुप्रीम कोर्ट राजद्रोह कानून (Sedition Law) की समीक्षा के लिए केंद्र को समय देने को तैयार हो गया है. मामले की सुनवाई करते हुए मंगलवार को चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने कहा कि वह सरकार को विचार के लिए समय देगी. लेकिन सॉलिसीटर जनरल सरकार से निर्देश लेकर बताएं कि लंबित केस और भविष्य में दर्ज होने वाले केस पर इसका क्या असर होगा? वह यह भी बताएं कि क्या अभी 124A के लंबित केस स्थगित रखे जा सकते हैं. बुधवार सुबह 10.30 बजे कोर्ट इस पहलू पर सुनवाई करेगा.


क्या है मामला?
लगभग 150 साल पुराना राजद्रोह कानून हाल के दिनों में दुरुपयोग को लेकर चर्चा में रह है. राजद्रोह के मामलों में लगने वाली आईपीसी की धारा 124A को 10 से ज़्यादा याचिकाओं के ज़रिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ताओं ने कानून को अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का हनन बताते हुए रद्द करने की मांग की है. इससे पहले हुई सुनवाई में सरकार ने कहा था कि इस कानून को 1962 में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच वैध करार दे चुकी है. 'केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार' मामले में दिए इस फैसले में कोर्ट ने कानून की सीमा तय की थी. यह कहा था कि सरकार के खिलाफ हिंसा भड़काने की कोशिश करने पर यह धारा लगनी चाहिए. हाल ही में कई राज्यों में गैरज़रूरी मामलों में भी यह धारा लगी है. इस दुरुपयोग को रोकने की ज़रूरत है.


सरकार का नया हलफनामा
मामले में 9 मई को सरकार ने नया हलफनामा दाखिल किया. इस हलफनामे में सरकार ने कानून पर दोबारा विचार की बात कही. सरकार ने कहा है कि देश 'आज़ादी का अमृत महोत्सव' मना रहा है. सरकार के सर्वोच्च स्तर पर खुद प्रधानमंत्री हर नागरिक की स्वतंत्रता और मानवाधिकार की रक्षा का समर्थन करते रहे हैं. सरकार इस बात को भी जानती है कि राजद्रोह कानून को लेकर न्यायविदों और दूसरे बुद्धिजीवियों ने अलग-अलग विचार व्यक्त किए हैं. सरकार इन सभी विचारों का आदर करती है. लेकिन देश की अखंडता को बनाए रखने के लिए इस तरह का कानून ज़रूरी भी है. सरकार सभी परिस्थितियों को देखते हुए निर्णय लेगी. फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट राजद्रोह कानून की वैधता पर सुनवाई न करे.


सिब्बल ने किया विरोध
आज मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के लिए पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुनवाई टालने का विरोध किया. उन्होंने कहा कि देश और सरकार अलग-अलग हैं. देश की अखंडता का सवाल उठा कर मामले को उलझाया जा रहा है. सिब्बल ने यह भी कहा कि मामले में कोई नया कानून संसद में लंबित नहीं है. सरकार पुराने कानून पर ही विचार कर रही है. इस आधार पर सुनवाई रोकना सही नहीं होगा.


समय देने के पक्ष में कोर्ट
इससे असहमति जताते हुए चीफ जस्टिस एन वी रमना ने कहा, "हलफनामे में लिखा है कि मामला खुद प्रधानमंत्री के संज्ञान में है. पीएम लोगों के अधिकारों को प्राथमिकता देने के पक्ष में हैं. सरकार मामले में व्यक्त किए जा रहे सभी विचारों से अवगत हैं. हम इसे मानने को तैयार हैं कि सरकार विषय को गंभीरता से देख रही है." चीफ जस्टिस ने आगे कहा, "लेकिन यह भी देखना होगा कि बेवजह मुकदमे से लोगों को कैसे बचाया जाए. उस दिन एटॉर्नी जनरल ने बताया कि हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए किसी पर राजद्रोह का केस दर्ज हो गया."


मुकदमे स्थगित रखने का दिया सुझाव
सॉलिसीटर जनरल ने इसे राज्यों से जुड़ा विषय बताया. लेकिन जज इससे आश्वस्त नहीं हुए. बेंच के बाकी 2 सदस्यों जस्टिस सूर्य कांत और हिमा कोहली से चर्चा के बाद चीफ जस्टिस ने कहा कि सॉलिसीटर जनरल यह बताएं कि सरकार मुकदमा झेल रहे लोगों को कैसे सुरक्षा देगी. जिन पर केस चल रहा है. जिन पर भविष्य में दर्ज होगा, उनके बारे में निर्देश लेकर बताएं. यह भी बताएं कि क्या सरकार ऐसे सभी केस स्थगित रखने का निर्देश देगी.


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