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अरुणाचल-तवांग को जोड़ने वाली सेला सुरंग के काम में आएगी तेजी, BRO ने आखिरी ब्लास्ट को दिया अंजाम

टनल का पहला ब्लास्ट अप्रैल 2019 में किया गया था, इसे न्यू आस्ट्रियन टनलिंग तकनीक से तैयार किया जा रहा है. दावा है कि 13 हजार फीट की उंचाई पर ये टनल बनने के बाद दुनिया की सबसे लंबी सुरंग बन जाएगी. 

नई दिल्ली: एलएसी पर चीन से चल रहे तनाव के बीच बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन यानि बीआरओ ने अरूणाचल प्रदेश के तवांग को जोड़ने वाली सामरिक सुरंग, सेला-टनल के आखिरी ब्लास्ट को अंजाम दिया. इस ब्लास्ट के साथ ही अब इस टनल के बनाने के काम में तेजी आ सकती है. क्योंकि अब एक साथ मुख्य टनल और एस्केप टनल का काम शुरू हो जाएगा. 

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, गुरूवार को बीआरओ के महानिदेशक, लेफ्टिनेंट जनरल राजीव चौधरी ने राजधानी दिल्ली में वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सेला-टनल के एस्केप-ट्यूब (टनल) के लास्ट-ब्लास्ट को किया. इस दौरान बीआरओ के सीनियर अधिकारी, प्रोजेक्ट-वर्तक के चीफ इंजीनियर और 42 टास्क फोर्स के साथ-साथ टनल बनाने में अहम भूमिका निभाने वाली कंपनी, पटेल इंजीनियरिंग लिमिटेड के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे. 

बीआरओ के प्रोजेक्ट वर्तक के तहत अरूणाचल प्रदेश के बलीपुर-चारदूर-तवांग रोड का जोड़ने वाली करीब डेढ़ किलोमीटर (1555 मीटर) लंबी मुख्य टनल और इस टनल की एस्केप-ट्यूब (980 मीटर) का काम बेहद तेजी से चल रहा है. फरवरी 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ऑल-वेदर टनल की आधारशिला रखी थी. टनल का पहला ब्लास्ट अप्रैल 2019 में किया गया था. बीआरओ ने लास्ट ब्लास्ट के साथ ही टनल का एक वीडियो भी जारी किया है जिसमें वर्कर और जेसीबी मशीन देखी जा सकती हैं. वीडियो में टनल के आखिरी छोर पर रोशनी साफ देखी जा सकती है. 

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, सेला टनल को न्यू आस्ट्रियन टनलिंग तकनीक से तैयार किया जा रहा है. इसके तहत सुरंग को स्नो-लाइन से काफी नीचे बनाया जा रहा है ताकि सर्दियों के मौसम में बर्फ हटाने की जरूरत ना पड़े. रक्षा मंत्रालय का दावा है कि 13 हजार फीट की उंचाई पर ये टनल बनने के बाद दुनिया की सबसे लंबी सुरंग बन जाएगी. 

रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि इस टऩल के बनने से असम के तेजपुर से चीन सीमा से लगे तवांग तक पहुंचने में काफी तेजी आएगी. क्योंकि फिलहाल सेला-पास (दर्रे) पर गाड़ियों की स्पीड काफी कम हो जाती है. सुरंग निर्माण पूरा होने पर अरूणाचल प्रदेश सहित पूरे उत्तर-पूर्व राज्य क्षेत्र का विकास तेजी से होगा. इसके अलावा प्राकृतिक आपदा य़ा फिर किसी विषम परिस्थिति में सैनिकों के रेस्कयू ऑपरेशन में भी काफी तेजी आएगी. जानकारी के मुताबिक, टनल के बनने से एलएसी पर तैनात सैनिकों की मूवमेंट भी काफी तेजी से की जा सकती है. 

आपको बता दें कि पिछले हफ्ते ही गृह मंत्री अमित शाह ने बीए‌सएफ के एक कार्यक्रम में देश की सीमा-नीति पर विस्तार पूर्वक जानकारी दी थी.  गृह मंत्री के मुताबिक, पिछले छह सालों में यानि 2014-20 के बीच देश की सीमाओं पर छह सुरंगों का सफलतापूर्वक निर्माण किया गया, जबकि 19 टनल्स का निर्माण-कार्य जारी है. 

गृह मंत्री ने मोदी सरकार के पिछले छह साल में सीमावर्ती इलाकों में किए गए विकास-कार्यों की तुलना पिछली सरकार के कार्यकाल से करते हुए आंकड़े पेश किए थे. अमित शाह के मुताबिक, वर्ष 2008-2014 के बीच करीब 3600 किलोमीटर का सड़क निर्माण-कार्य किया गया, जबकि वर्ष 2014-20 के बीच 4764 किलोमीटर का निर्माण हुआ.

सीमावर्ती सड़कों का बजट भी इस अवधि में 23 हजार करोड़ से बढ़कर 47 हजार करोड़ हो गया.  यूपीए का नाम लिए बगैर अमित शाह ने कहा कि 2008-14 के बीच करीब 7000 मीटर पुलों का निर्माण हुआ था जबकि पिछले छह सालों में ये निर्माण दोगुना यानि 14000 मीटर हो गया.  यहां तक की 2008-14 में सीमा पर केवल एक सुरंग का निर्माण हुआ था, जबकि 2014-20 के बीच छह सुरंगों का निर्माण किया गया. 

गृह मंत्री ने बताया था कि भारत-चीन सीमा पर वर्ष 2008-14 के बीच महज़ 230 किलोमीटर लंबी सड़क की कटिंग और फोर्मेटिंग का काम हुआ जबकि मोदी सरकार के 2014-20 के बीच 470 किलोमीटर का काम हुआ है.  गृह मंत्री ने कहा था कि आजादी के बाद हमें 15 हजार किलोमीटर का लैंड बॉर्डर और करीब 07 हजार किलोमीटर लंबी समुद्री सीमा मिली थी.

ऐसे में बहुत जरूरी था कि सीमा सुरक्षा नीति बनाई जाती. लेकिन एक लंबे समय तक इसकी अनदेखी की गई. अटल बिहारी वाजपेयी साहब के समय में एक स्ट्रक्चर सीमा-नीति बनी, जिसके तहत 'वन बॉर्डर वन फोर्स' को लागू किया गया. उन्होनें कहा कि मोदी जी ने बॉर्डर इंफ्रास्ट्रकचर के निर्माण को वरीयता दी.  गृह मंत्री ने कहा था कि जिस देश की सीमाएं सुरक्षित होती हैं वही राष्ट्र सुरक्षित रहता है.

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