'सेल्फ रिस्पेक्ट मैरिज' के लिए सार्वजनिक घोषणा की जरूरत नहीं होती, मद्रास HC के फैसले को रद्द कर बोला SC
साल 1968 में तमिलनाडु के विवाह कानून के प्रावधानों में संशोधन किया गया था. संशोधन का मकसद ब्राह्मण पुजारियों, पवित्र अग्नि और सप्तपदी (सात चरण) की अनिवार्यता को खत्म करना था.
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में सोमवार (29 अगस्त) को कहा कि तमिलनाडु में संशोधित हिंदू विवाह कानून के तहत वकील परस्पर सहमति से दो वयस्कों के बीच 'सुयमरियाथाई' (आत्मसम्मान) विवाह संपन्न करा सकते हैं.
तमिलनाडु सरकार ने 1968 में, सुयमरियाथाई विवाह को वैध बनाने के लिए कानून के प्रावधानों में संशोधन किया था. इसका मकसद विवाह प्रक्रिया को सरल बनाते हुए ब्राह्मण पुजारियों, पवित्र अग्नि और सप्तपदी (सात चरण) की अनिवार्यता को खत्म करना था.
मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को किया रद्द
यह संशोधन विवाह कराने के लिए ऊंची जाति के पुजारियों और विस्तृत रीति-रिवाजों की आवश्यकता को दूर करने के लिए किया गया था. हालांकि, इन विवाहों को भी कानून के अनुसार पंजीकरण कराने की आवश्यकता थी. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मद्रास हाईकोर्ट के एक फैसले को रद्द करते हुए यह आदेश दिया. हाईकोर्ट ने कहा था कि वकील अपने कार्यालयों में ऐसे विवाह नहीं करा सकते हैं.
क्या बोला कोर्ट?
जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. इसके साथ ही पीठ ने याचिका मंजूर कर ली, लेकिन इसने कहा कि वकील अदालत के अधिकारियों के रूप में पेशेवर क्षमता में काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि व्यक्तिगत रूप से दंपती को जानने के आधार पर वे कानून की धारा-7(ए) के तहत विवाह करा सकते हैं.
इस मामले में सुनवाई कर रहा था कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ इलावरसन नाम के एक व्यक्ति की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी गई थी. इलावरसन की ओर से पेश वकील एथेनम वेलन ने दावा किया कि उन्होंने अपनी पत्नी के साथ सुयमरियाथाई विवाह किया था और उनकी पत्नी अभी अपने अभिभावकों की अवैध अभिरक्षा में है.
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