चलती फिरती हुई आंखों से अज़ां देखी है 


मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है


ये शायरी एक बेटे ने दुनिया की तमाम मांओं के लिए लिखी है. वो मांएं जो बिना किसी शिकायत के पूरी जिंदगी अपने बच्चों को समर्पित करने के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं. वो मांएं जो अपने बच्चों को जरा भी तकलीफ में नहीं देख सकती, भले ही खुद को कितनी ही तकलीफ झेलनी पड़े. 


यही कारण भी है कि हमारी संस्कृति में मां को भगवान का स्थान दिया गया है. भारतीय संस्कृति में मांओं को परिवार का सम्मान और धरोहर माना जाता है. हमें बचपन से ही सिखाया जाता है कि अपने घर के बड़े- बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए. उम्र बढ़ने के साथ ही माता-पिता को देखभाल की जरूरत होती है. नैतिक शिक्षा की ये बातें हमें सिखाई और पढ़ाई जाती हैं.


नैतिकता के इन मानदंडों के बीच क्या कभी आपने ये जानने की कोशिश की है कि आखिर आपके घर की बुजुर्ग महिलाएं, फिर चाहे वह मां हो या दादी-नानी, उन्हें खाने में क्या पसंद है? उनका पसंदीदा रंग कौन सा है? या उन्हें किस तरह की फिल्में देखना पसंद है? 


जवाब शायद ही आपको पता होगा क्योंकि हम अपने घर की बुजुर्ग महिलाओं के बारे में उतना ही जानते हैं जितना वह हमें बताती हैं. 


हाल ही में बुजुर्ग महिलाओं की स्थिति को लेकर एक रिपोर्ट सामने आई है जो समाज की एक स्याह तस्वीर को दिखाती है. इस रिपोर्ट में भारत में बूढ़ी महिलाओं की स्थिति के बारे में बताया गया है.


दरअसल हेल्पएज इंडिया नाम की एक संस्था ने 'वर्ल्ड एल्डर एब्यूज अवेयरनेस डे' (15 जून) से पहले अपनी राष्ट्रीय 2023 रिपोर्ट- 'वीमेन एंड एजिंग: इनविजिबल ऑर एम्पावर्ड?' पर अपनी रिपोर्ट पेश की है. 


इस रिपोर्ट में ऐसी वृद्ध महिलाओं के बारे में बताया गया है जो अपने ही परिवार के साथ रहते हुए शोषण का शिकार हुई हैं. इस सर्वे में 7911 बुजुर्ग महिलाओं (उम्र 60 और उससे ज्यादा) को शामिल किया गया है. सर्वे में 20 राज्य, 2 केंद्रशासित प्रदेश और 5 मेट्रो शहर के साथ ग्रामीण और शहरी भारत दोनों की महिलाओं को कवर किया गया है. 


रिपोर्ट में जो डेटा सामने आया है उसके अनुसार 16 प्रतिशत बुजुर्ग महिलाओं (60 साल से ऊपर) के साथ दुर्व्यवहार किया गया. 50 प्रतिशत बुजुर्ग महिलाओं के साथ शारीरिक हिंसा का भी पता चला है. इसके अलावा 46 फीसदी बुजुर्ग महिलाएं अपमान सहती हैं और 31 बुजुर्ग महिलाओं का मानना है कि उनका भावनात्मक शोषण हो रहा है.


अपने बेटे ने छोड़ा साथ


चौंकाने वाली बात तो ये है कि 40 प्रतिशत मामलों में बूढ़ी महिलाओं के साथ उनके अपने बेटों ने भी दुर्व्यवहार किया है. वहीं 27 प्रतिशत मामलों में बहुओं ने भी अपने घर की बुजुर्ग महिला के साथ दुर्व्यवहार किया है.




18% बुजुर्ग महिलाएं नहीं करतीं रिपोर्ट 


इसी सर्वे के अनुसार अपने साथ दुर्व्यवहार होने के बाद भी ज्यादात्तर बूढ़ी महिलाएं इसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाती हैं. 


उन्हें डर है कि अगर वह इस बारे में खुल कर बात करती हैं तो उनके परिवार की इज्जत चली जाएगी या फिर उनके साथ ज्यादा दुर्व्यवहार होने लगेगा. रिपोर्ट के अनुसार इन कारणों का हवाला देते हुए 18 फीसदी बुजुर्ग महिलाओं ने इस बारे में कोई बात नहीं की, वहीं 16 फीसदी भारतीय बुजुर्ग महिलाओं को उनके लिए उपलब्ध संसाधनों के बारे में कोई जानकारी नहीं है, जबकि 13 फीसदी बूढ़ी महिलाओं को लगता है कि उनकी चिंताओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता है.




डिजिटल उपकरण इस्तेमाल करने में भी पीछे हैं बुजुर्ग


आज के जमाने में बुजुर्गों के अकेले रह जाने की बड़ी वजह टेक्नोलॉजी भी है. एक तरफ जहां ज्यादातर युवा फोन में अपना ज्यादातर समय बिताते हैं. वहीं दूसरी तरफ स्मार्टफोन, लैपटॉप उपयोग करने की बात है, वृद्ध महिलाएं बहुत पीछे हैं. इसी रिपोर्ट के अनुसार 60 प्रतिशत बुजुर्ग महिलाओं को आज भी डिजिटल डिवाइस चलाना नहीं आता. तमिलनाडु में 89 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 85 फीसदी, बिहार में 82 फीसदी  और उत्तराखंड 82 फीसदी बुजुर्ग महिलाओं को आज भी डिजिटल डिवाइस चलाना नहीं आता.


सिर्फ 14 फीसदी बुजुर्ग महिलाएं चलाती हैं फोन



  • सर्वे में शामिल 60% महिलाओं ने कहा कि उन्होंने कभी फोन इस्तेमाल नहीं किया 

  • 14% बुजुर्ग महिलाओं ने कहा कि वह फोन का इस्तेमाल करती हैं 

  • 26% महिलाओं ने कहा कि वह फोन नहीं चलातीं हैं 



बुजुर्ग महिलाओं को बना दिया जाता है केयरटेकर 


हेल्पऐज इंडिया की रिसर्च पार्टनर प्रज्ञा के अनुसार, "भारत में बुजुर्ग जब एक समय के बाद घर में रहना शुरू करते ही तो उन्हें केयर टेकर बना दिया जाता है. उनसे उनकी मर्जी तक नहीं पूछी जाती और अगर उनकी मर्जी पूछी भी जाती है तो इसके विरोध नहीं कर पाते, खास कर महिलाएं. केयर टेकर बनने से मना न करने का सबसे बड़ा कारण है कि ज्यादातर बुजुर्ग महिलाएं वित्तीय रूप से सशक्त नहीं होती है और ना ही समाज उन्हें अकेले रहने देता है. पति की मृत्यु के बाद महिला को परिवार के किसी दूसरे पुरुष पर निर्भर होना पड़ता है.”


कम उम्र में पढ़े लिखे होने का कितना पड़ता है प्रभाव 


हेल्पऐज इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार घर की महिला बुजुर्ग के साथ हो रहे दुर्व्यवहार का एक कारण उनका पढ़ा लिखा नहीं होना भी है. रिपोर्ट के अनुसार सर्वे की गई महिलाओं में से 50% से ज्यादा बुजुर्ग महिलाएं निरक्षर हैं यानी पढ़ी लिखी नहीं हैं. 


जब उनसे शिक्षा और कम उम्र में कमाने की काबिलियत और इसका उनकी बढ़ती उम्र पर पड़ते वाले असर को लेकर सवाल किया गया तो नतीजे  कुछ यूं सामने निकलकर आए. 


66 फीसदी से ज्यादा उम्र की महिलाओं का कहना था कि शिक्षा और कम उम्र में कमाने की काबिलियत के कारण बुढ़ापे में उन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है. 


जबकि 13 फीसदी महिलाएं ऐसी थीं, जिनका मानना था कि इसकी वजह से उन पर नकारात्मक प्रभाव हुआ है. अन्य 21 फीसदी महिलाओं का कहना था कि इसकी वजह से कोई प्रभाव नहीं पड़ा.


क्या बुजुर्गों को मिल रहा है उनका अधिकार 


एबीपी से बातचीत में सामाजिक कार्यकर्ता स्वाति राय कहती है. हमारे देश में हमेशा से ही ये चलन रहा है कि पहले मां- बाप अपने बच्चे को पढ़ा लिखाकर अपने पैरों पर खड़ा रहने लायक बनाती है. ताकि भविष्य बच्चे भी उनके बुढ़ापे का सहारा बन सके. लेकिन कई बार बच्चों को अपने बूढ़े माता-पिता बोझ लगने लगते हैं. 


स्वाति कहती है कि दुर्व्यवहार भी ज्यादा महिला बुजुर्गों के साथ किया जाता है, क्योंकि वह आर्थिक तौर पर मजबूत नहीं होतीं. ऐसे में अगर घर की बुजुर्ग महिला अगर विधवा हैं तो वह और भी ज्यादा निर्भर हो जाती हैं. 


स्वाति आगे कहती है कि देश की बहुत बुजुर्ग महिलाओं को नहीं पता कि हमारे देश में विधवा बुजुर्ग महिलाओं को सरकार की तरफ से पेंशन दी जाती है. इस तरह की छोटी छोटी सुविधाओं के बारे में उन्हें पता होना चाहिए. ताकि उन्हें थोड़ी आर्थिक सहायता मिल सके और अपने बेटे बहु पर निर्भरता कम हो सके. 


बुजुर्गों के हक के लिए क्या है कानून 


अगर घर में रहने वाले बुजुर्ग माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार हो रहा हो तो इसे रोकने के लिए ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण कानून 2007 (MWPSC)’ है, यह कानून खास तौर पर अपने  संतानों द्वारा सताए जा रहे बुजुर्गों के लिये बनाया गया है. 


इसके तहत बच्चों/रिश्तेदारों के लिए माता-पिता/वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल करना, उनके स्वास्थ्य, उनके रहने-खाने जैसी बुनियादी ज़रूरतों की व्यवस्था करना अनिवार्य है.


इस कानून के तहत अगर बुजुर्ग माता-पिता अपने बच्चों को संपत्ति दे चुके हैं. इसके बाद वह उसकी देखभाल नहीं कर रहे तो ऐसी स्थिति में संपत्ति का ट्रांसफर भी रद्द हो सकता है. यानी वह बुजुर्ग माता-पिता की वो प्रॉपर्टी एक बार  फिर से बुजुर्ग के नाम हो जाएगी. इसके बाद वह चाहे तो अपने बेटे-बेटियों को अपनी संपत्ति से बेदखल भी कर सकता है. 


इसके अलावा वो बुजुर्ग जिनके पास अपना गुजारा करने के लिए संपत्ति नहीं है और उनके रिश्तेदार और बच्चे भी उनका ध्यान नहीं रख रहे हैं. ऐसी स्थिति में वे भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं. जिसके बाद उन्हें हर महीने 10 हजार तक का गुजारा भत्ता मिल सकता है.  


वहीं 60 वर्ष से ऊपर के बुजुर्ग जिनके पास कोई बेटा या बेटी न हो, वे भी अपने रिश्तेदारों या अपनी संपत्ति के उत्तराधिकारियों से भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं. ऐसे मामलों में तुरंत सुनवाई करने के लिए कानून में मेनटिनेंस ट्राइब्यूनल और अपीलेट ट्राइब्यूनल का प्रावधान किया गया है. देश के ज्यादातर जिलों में ऐसे ट्राइब्यूनल हैं. जिसके अनुसार किसी बुजुर्ग से शिकायत मिलने के बाद ट्राइब्यूनल को 90 दिनों के भीतर उसका निपटारा करना होता है.