Gay Judge Appointment Delayed: वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ किरपाल (Saurabh Kirpal) की हाईकोर्ट (High Court) के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति कम से कम 2017 से रुकी हुई है. उनका मानना है कि उनकी समलैंगिकता इसके लिए जिम्मेदार है. उन्होंने एक मीडिया आउटलेट से कहा कि प्रमोशन के अधर में लटके रहने का कारण उनकी समलैंगिकता है.


50 वर्षीय किरपाल ने एनडीटीवी को बताया, "इसका कारण मेरी कामुकता है, मुझे नहीं लगता कि सरकार अनिवार्य रूप से खुले तौर पर समलैंगिक व्यक्ति को बेंच में नियुक्त करना चाहती है." मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनका नाम पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने ही प्रस्तावित किया था, लेकिन पृष्ठभूमि की जांच करने वाले खुफिया ब्यूरो (IB) ने कहा कि उनका साथी, जो एक यूरोपीय नागरिक है वो सुरक्षा जोखिम पैदा कर सकता है. एजेंसी की रिपोर्ट्स के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 2019 और 2020 के बीच तीन बार किरपाल की सिफारिश पर अपने अंतिम निर्णय में देरी की.


सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बावजूद केंद्र ने नहीं की घोषणा


अंत में नवंबर 2021 में, भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने केंद्र सरकार की प्रारंभिक आपत्तियों को खारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायाधीश के रूप में किरपाल की पदोन्नति को मंजूरी दे दी. इसके बावजूद, सरकार ने किरपाल की नियुक्ति की घोषणा नहीं की. यही कारण है कि पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के रवैये को लेकर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी. अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने जिन नामों की सिफारिश की है उनको रोकना "स्वीकार्य नहीं" था. 


'कॉलेजियम सिस्मट में कई खामियां हैं'


अधिवक्ता किरपाल ने कहा कि उन्हें कॉलेजियम प्रणाली के बारे में भी चिंता है, जिसके कारण सरकार और न्यायपालिका के बीच सार्वजनिक बहस हुई है. उन्होंने कहा, "मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो सोचते हैं कि कॉलेजियम प्रणाली एक अच्छी प्रणाली है...मुझे लगता है कि इसमें कई खामियां हैं. इसमें सुधार की जरूरत है. शायद नियुक्ति में सरकार की कुछ औपचारिक भूमिका ही होनी चाहिए."


'मैं किसी तरह का स्पष्टीकरण नहीं दूंगा'


यह पूछे जाने पर कि उनके लैंगिक झुकाव के कारण ही उनकी पदोन्नति रुकी थी, किरपाल ने कहा, "सरकार और कॉलेजियम की ओर से मेरे पास कभी इनपुट नहीं पहुंचा है. बहुत बार मैं मैंने सुना है कि दिया गया कारण यह है कि मेरा साथी एक ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट है, लेकिन वह नहीं है...वह दूतावास में वीजा अधिकारी के रूप में काम कर रहा है, उसका मानवाधिकारों से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन जाहिर है, किसी ने भी मुझसे कभी संपर्क नहीं किया है, इसलिए मैं किसी तरह का स्पष्टीकरण नहीं दूंगा."


'LGBTQ पर सरकार के विचार पुराने थे'


अधिवक्ता ने आगे कहा, "मुझे लगता है कि सरकार अभी भी एक निश्चित दृष्टिकोण के खिलाफ है या (धारा) 377 (जो समलैंगिकता का अपराधीकरण करती है) और समलैंगिकता पर एक निश्चित दृष्टिकोण रखती है. उन्होंने (सरकार) कभी भी 377 के डिक्रिमिनलाइजेशन का विरोध नहीं किया...उन्होंने यह कहते हुए कभी हलफनामा दायर नहीं किया कि इसे डिक्रिमिनलाइज किया जाना चाहिए." किरपाल ने यह भी कहा कि LGBTQ मुद्दों पर सरकार के विचार पुराने थे.


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