अलगाववादी नेता गिलानी का निधन: पाकिस्तान में एक दिन का राजकीय शोक, कांग्रेस ने इमरान सरकार को लताड़ा
प्रधानमंत्री इमरान खान ने देश में एक दिन के राजकीय शोक का एलान किया तो विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भारत के खिलाफ ट्वीट किया. इसके बाद कांग्रेस ने इमरान सरकार को लताड़ लगाई है.
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नई दिल्ली/श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में तीन दशकों से ज्यादा समय तक अलगाववादी मुहिम का नेतृत्व करने वाले और पाकिस्तान समर्थक सैयद अली शाह गिलानी का कल रात उनके आवास पर निधन हो गया. पाकिस्तान ने उनकी मौत पर भी सियासत की है. प्रधानमंत्री इमरान खान ने देश में एक दिन के राजकीय शोक का एलान किया तो विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भारत के खिलाफ ट्वीट किया. इसके बाद कांग्रेस ने इमरान सरकार को लताड़ लगाई है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने क्या कहा?
गिलानी के निधन पर पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने ट्वीट किया, ‘’कश्मीर स्वतंत्रता आंदोलन के मशाल वाहक सैयद अली शाह गिलानी के निधन पर पाकिस्तान ने शोक व्यक्त करता है. गिलानी ने भारतीय कब्जे की नजरबंदी के तहत आखिर तक कश्मीरियों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी. उन्हें शांति मिले और उनकी आजादी का सपना साकार हो.’’ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने गिलानी के निधन पर अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल के जरिए शोक व्यक्त किया.
कुरैशी पर कांग्रेस का पलटवार
कुरैशी के इस ट्वीट के जवाब में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने उन्हें लताड़ते हुए कहा, ‘’मिस्टर कुरैशी आपने वास्तव में जिहाद के नाम पर निर्दोष कश्मीरियों को कट्टरपंथी बनाने के लिए भारत में काम करने वाली अपनी खुफिया एजेंसी का एक प्रतिनिधि खो दिया. निर्दोष कश्मीरियों की हत्या के लिए आपका देश और आपके सभी प्रतिनिधि इतिहास में दर्ज होंगे.’’
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट किया, ‘’हम भले ही ज्यादातर चीजों पर सहमत नहीं थे, लेकिन मैं उनकी दृढ़ता और उनके भरोसे पर अडिग रहने के लिए उनका सम्मान करती हूं.’’ पीपुल्स कांफ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने भी गिलानी के निधन पर शोक व्यक्त किया.
बता दें कि पूर्ववर्ती राज्य में सोपोर से तीन बार विधायक रहे गिलानी 2008 के अमरनाथ भूमि विवाद और 2010 में श्रीनगर में एक युवक की मौत के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों का चेहरा बन गए थे. वह हुर्रियत कांफ्रेंस के संस्थापक सदस्य थे, लेकिन वह उससे अलग हो गए और उन्होंने 2000 की शुरुआत में तहरीक-ए-हुर्रियत का गठन किया था. आखिरकार उन्होंने जून 2020 में हुर्रियत कांफ्रेंस से भी विदाई ले ली.
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