नई दिल्ली: बीजेपी और कांग्रेस दोनों को दिल्ली की सत्ता से दूर रखने के लिए फेडरल फ्रंट बनाने की कवायद में जुटे तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव को बड़ा झटका लगता दिख रहा है. केसीआर पिछले दो दिनों से दिल्ली में डेरा डाले हैं लेकिन बीएसपी प्रमुख मायावती और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव नहीं मिल पाए हैं. मुलाकात की आगे भी संभावना कम दिख रही है.


अखिलेश यादव लखनऊ में एक कार्यक्रम में व्यस्त हैं तो मायावती कल से दिल्ली में है. तेलंगाना के दोबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद केसीआर आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात करेंगे. यह मुलाकात राज्य के विकास के मुद्दे पर होगा.


चंद्रशेखर राव 23 दिसंबर को विशेष विमान से हैदाराबाद से राजनीतिक यात्रा पर निकले. उनका पहला पड़ाव भुवनेश्वर था. उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में उतरने और क्षेत्रीय पार्टी के नेताओं से मुलाकात के लिए एक महीने के लिए स्पेशल एयरक्राफ्ट हायर किया है.


भुवनेश्वर में केसीआर ने ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल (बीजेडी) के प्रमुख नवीन पटनायक से मुलाकात की. इस दौरान कांग्रेस और बीजेपी से अलग फेडरल फ्रंट बनाने के मुद्दे पर चर्चा की. मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि साल 2019 के चुनावों से पहले बीजेपी और कांग्रेस का विकल्प देने के लिए क्षेत्रीय दलों के एकजुट होने की गहरी जरूरत है.



राव ने कहा, ‘‘मैं निश्चित तौर पर यह कह सकता हूं कि देश में इस समय क्षेत्रीय दलों के एकीकरण की सख्त आवश्यकता है.’’ 11 दिसंबर को चुनावी जीत हासिल करने के बाद उन्होंने जिक्र किया था कि क्षेत्रीय दलों का एक संघ जल्द ही उभरकर सामने आएगा.


भुवनेश्वर के बाद वह कोलकाता पहुंचे. जहां उन्होंने 24 दिसंबर को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी से मुलाकात की. मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि वह गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेस गठबंधन के लिए विभिन्न दलों के साथ बातचीत का सिलसिला जारी रखेंगे.


 


ममता, अखिलेश और मायावती को लेकर असमंजस
विपक्षी दलों के गठबंधन में सबसे अधिक असमंजस बीजेपी की धुर विरोधी ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और मायावती को लेकर है. ममता बनर्जी बीजेपी के खिलाफ गठबंधन की बात जरूर करती रही हैं लेकिन इसका फॉर्मूला क्या होगा यह नहीं जाहिर किया है. वह कांग्रेस के नेतृत्व में नहीं लड़ने को लेकर कई बार इशारा कर चुकी हैं. ममता का कहना है कि कांग्रेस विपक्षी दलों के गठबंधन में शामिल हो न की नेतृत्व करे. इसकी एक बड़ी वजह प्रधानमंत्री का पद है.


वहीं अखिलेश यादव और मायावती भी पिछले कुछ दिनों से अन्य विपक्षी पार्टियों से दूरी बना रखी है. पिछले दिनों टीडीपी प्रमुख और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पहल पर हुई विपक्षी दलों की बैठक में भी मायावती और अखिलेश शामिल नहीं हुए थे. दोनों ने कांग्रेस मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण से भी दूरी बनाए रखी.



ऐसी खबरें आती रही है कि मायावती-अखिलेश ने लोकसभा चुनाव के लिए यूपी में गठबंधन कर लिया है. जिसमें कांग्रेस को तवज्जो नहीं दी गई है. कांग्रेस की कोशिश है कि ममता बनर्जी, मायावती और अखिलेश साथ चुनाव लड़े. कांग्रेस तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी को हराकर उत्साहित है. शायद यही वजह है कि कांग्रेस आगे बढ़कर तीनों क्षेत्रीय तुरुपों की ओर हाथ नहीं बढ़ा रही है.


लोकसभा चुनाव में 100 से भी कम दिनों का वक्त बचा है. सत्तारूढ़ बीजेपी लगातार एनडीए के घटक दलों को एकजुट करने में जुटी है. विपक्षी पार्टियां अब भी अलग-थलग दिख रही है.