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भीषण गर्मी, फिर भयंकर ठंड, जानिए भारत में कैसे बदल रहा है मौसम का ट्रेंड

मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि मौसम के पैटर्न के बदलने का सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या 50 सालों में मौसम का ट्रेंड बदल गया है. 

उत्तर भारत इस वक्त कड़ाके की ठंड झेल रहा है. राजधानी दिल्ली में तो सर्दी ने कई रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. मौसम विभाग की मानें तो अभी सर्दी का सितम जारी रहेगा. पिछले कुछ सालों में भारत ने मौसम के अलग अलग अंदाज को देखा है. कभी भयंकर गर्मी, तो कभी लगातार बारिश और अब एक बार फिर रिकॉर्ड तोड़ ठंड ने मौसम के बदलते ट्रेंड का संकेत दिया है. 

साल 2022 के मौसम को देखें तो पाएंगे की इस एक साल कई बदलाव हुए हैं. साल के पहले महीने से लेकर दिसंबर तक मौसम का अंदाज पूरी तरह अलग रहा. मानसून और गर्मी के आगमन में भी बदलाव देखा गया. बीते साल मौसम में बदलाव जाड़े के समय भी कायम रहा.

कई मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या 50 सालों में मौसम का ट्रेंड बदल गया है. 

क्या है मौसम बदलने का कारण

अध्ययनों के अनुसार पिछले भूगर्भीय रिकॉर्ड की तुलना में अब मौसम में तेजी से बदलाव हो रहा है. मौसम में ये बदलाव जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे हैं. वर्तमान जलवायु परिवर्तन का असर ग्लोबल वार्मिंग और मौसम के पैटर्न दोनों पर पड़ रहा है.

आसान भाषा में समझे तो जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग और मानसून में अस्थिरता को बढ़ा रही है, जिसके चलते गर्मी के मौसम की अवधि बढ़ रही है और बारिश की अवधि कम हो रही है. साल 2022 में साल 1902 के बाद से दूसरी सबसे बड़ी चरम घटनाएं देखी गई हैं. बाढ़ और सूखे जैसी खतरनाक घटनाएं बढ़ गई है. 

जलवायु परिवर्तन क्या है?

जलवायु एक लंबे समय में या कुछ सालों में किसी स्थान का औसत मौसम है और जलवायु परिवर्तन उन्हीं परिस्थितियों में हुए बदलाव के कारण होता है. पिछले 50 सालों में मौसम के ट्रेंड में हुए बदलाव का एक कारण जलवायु परिवर्तन जिसके सबसे बड़े दोषी हम यानी मानव क्रियाएं हैं. 

दरअसल पिछले कुछ सालों में घरेलू कामों, कारखानों और परिचालन के लिए मानव तेल, गैस और कोयले का इस्तेमाल बढ़ा है. जिसका जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.

जब हम जीवाश्म ईंधन जलाते हैं तो उनसे निकलने वाले ग्रीन हाउस गैस में सबसे ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड होता है. वातावरण में इन गैसों की मौजूदगी के कारण सूरज का ताप धरती से बाहर नहीं जा पाता है और ऐसी स्थिति धरती का तापमान बढ़ने लगता है. 

19वीं सदी की तुलना में 20वीं सदी में धरती का तापमान लगभग 1.2 सेल्सियस अधिक बढ़ चुका है और वातावरण में CO2 की मात्रा में भी 50 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है.

 बदला मौसम का पैटर्न

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल 2013 (IPCC) के एक रिपोर्ट के अनुसार 1880-2012 के बीच वैश्विक औसत तापमान में लगभग 0.85 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है. तापमान में ये बढ़त मुख्य रूप से वातावरण में CO2 और अन्य ग्रीन हाउस गैसों (GHGs) में वृद्धि के कारण हुई है. 

इसी रिपोर्ट में बताया गया कि फॉसिल फ्यूल (कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस) के जलने, वनों की कटाई और अन्य भूमि उपयोग के कारण पिछले 150 सालों में पृथ्वी के वायुमंडल में CO2 की मात्रा 40 प्रतिशत से अधिक बढ़ गई है. इस बढ़े हुए CO2 का न केवल जलवायु परिवर्तन पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है बल्कि इसका प्रभाव मौसम के बदल रहे ट्रेंड पर भी पड़ रहा है. 

गर्म होती जा रही है धरती

सीएसई की अर्बन लैब ने 2015 के जनवरी महीने से लेकर मई 2022 तक भारत में तापमान के आंकड़ों का विश्लेषण किया है. इस अध्ययन से पता चलता है कि 2022 के लिए औसत हवा का तापमान प्री-मॉनसून या गर्मी (आईएमडी वर्गीकरण के अनुसार मार्च, अप्रैल और मई) 1971-2000 क्लाईमेटॉलॉजी पर आधारित बेसलाइन ट्रेंड्स की तुलना में 1.24 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म है.

वहीं साल 2021 में संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने 'स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट इन 2021' रिपोर्ट जारी की जिसके अनुसार पिछले सात सालों की तुलना में 2021 ने सबसे गर्म साल होने का रिकॉर्ड बनाया है. इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2021 के दौरान ग्रीनहाउस गैस की सघनता, समुद्री जल स्तर में वृद्धि, महासागर का बढ़ता तापमान और समुद्री अम्लीकरण ने नया रिकॉर्ड बनाया है जो  जलवायु परिवर्तन के चार प्रमुख कारण हैं.

और भी गर्म होगा आने वाला साल 

यूएन एजेंसी के अनुसार मानव गतिविधियों के कारण आने वाले कुछ सालों में हमारी धरती के महासागर व वातावरण में भारी बदलाव आ सकता है. यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी के महासचिव पेटेरी टालस ने बताया, 'जल्द ही हमें एक और सबसे गर्म साल देखने को मिलेगा. बढ़ रहे ग्रीनहाउस गैस के कारण इकट्ठा हो रहे ताप को देखते हुए अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि धरती आने वाली कई पीढ़ियों तक गर्म होती रहेगी. 

गर्म हो रही धरती के बीच ठंड भी ले रहा है जान 

गर्म होती धरती के साथ पिछले कुछ सालों में ठंड का प्रकोप भी बढ़ा है. उत्तर भारत में साल 2021-22 की ठंड सामान्य से ज्यादा लंबे समय तक रही. इन सालों में दिन के दौरान ज्यादा ठंड देखी गई. दिसंबर 2021 के बाद से उत्तर, उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत के क्षेत्रों में तापमान लगातार सामान्य से नीचे बना रहा जिसके कारण ठंडे दिन या  "कोल्ड डे" की स्थिति बन गई. 

साल 2023 की बात करें तो देश में शीतलहर का प्रकोप बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है. मौसम विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले कुछ दिनों में पारा और गिर सकता है. वहीं, पहले ही संभावना जता दी गई थी कि इस साल पड़ने वाली ठंड कई पुराने रिकॉर्ड तोड़ सकती है. देश की राजधानी दिल्ली में शुक्रवार (6 जनवरी) को पारा 1.8 डिग्री रहा और ये शिमला से भी ज्यादा ठंडा था. 

मौसम विज्ञानियों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन की वजह से तकरीबन हर मौसम में असामान्य व्यवहार नजर आता है. मानव जनित गतिविधियों की वजह से होने वाले जलवायु परिवर्तन का असर गर्मियों में भीषण गर्मी और सर्दियों में कड़ाके की ठंड के तौर पर सामने आ रहा है. मौसम विज्ञानियों की मानें, तो जलवायु परिवर्तन पर रोक लगाने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो मौसमों में ऐसे बदलाव देखे जाते रहेंगे.

औसत सतही तापमान

पृथ्वी की सतह का औसत तापमान आने वाले 20 सालों यानी साल 2040 तक पूर्व-औद्योगिक स्तरों (1.5 डिग्री सेल्सियस) और उत्सर्जन में तीव्र कमी के बिना सदी के मध्य तक 2 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगा. साल 2018 में आईपीसीसी की ग्लोबल वार्मिंग रिपोर्ट के अनुसार आबादी का 2-5वां हिस्सा 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर के तापमान वाले क्षेत्रों में रहता है.

पिछले 1,25,000 सालों में पिछला दशक सबसे ज्यादा गर्म रहा. वैश्विक सतह का तापमान 2011-2020 के दशक में 1850-1900 की तुलना में 1.09 डिग्री सेल्सियस अधिक था. 

भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

पिछले कुछ सालों में मानसून प्रणालियों में बदलाव देखा गया है. गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के कई हिस्सों में पिछले साल यानी 2022 में ज्यादा बारिश दर्ज की गई थी. इसके बिल्कुल उलट पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार में बारिश ही नहीं हुई. पिछले साल के अगस्त महीने में बंगाल की खाड़ी में एक के बाद एक दो मानसून चक्र बने जिससे पूरा मध्य भारत प्रभावित हुआ. 

साल 2022 में औसत से ज्यादा दर्ज हुई बारिश
 
इस बार मानसून सीजन में देश भर में सामान्य से 9% ज्यादा बारिश दर्ज की गई है लेकिन वो कुछ ही इलाकों में हुई देश कई हिस्से ऐसे भी रहे जहां सूखा पड़ा रहा. यहां मानसून की गतिविधियां बिल्कुल ना के बराबर दिखीं या बहुत कम दिखाई दीं.

इसमें उत्तर प्रदेश के कई इलाके हैं, खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर इलाके शामिल हैं. इस के अलावा बिहार , झारखंड,  पश्चिम बंगाल और नागालैंड, मणिपुर जैसे कई राज्य हैं जहां कुछ इलाकों में बारिश हुई तो कई इलाके सूखे की चपेट में हैं. यहां फसलें सूखने की कगार पर है.
 
देश भर में 16 अगस्त तक सामान्य रूप से 588 मिमी बारिश होनी चाहिए थी लेकिन अब तक 645.4 मिमी बारिश हुई है. मध्य भारत में 24% दक्षिण भारत में 30% ज्यादा बारिश हुई है जबकि पूर्वोत्तर पूर्वी राज्यों में 17 % कम बारिश हुई है.

गंगा पट्टी वाले इलाकों में सामान्य से 45% तक कम बारिश हुई है गंगा पट्टी वाले इलाकों में अगर उत्तराखंड राज्य को देखा जाए तो वहां सामान्य से 12% उत्तर प्रदेश में 45% बिहार में 40% झारखंड में 36% और पश्चिम बंगाल में 36% कम बारिश दर्ज की गई है.

अब साफ दिख रहा जलवायु परिवर्तन का असर
 
इस बार देश में ऐसी स्थिति क्यों पैदा हुई, इस बारे में भारतीय मौसम विभाग के वैज्ञानिकों ने बताया कि बंगाल की खाड़ी में जो लो प्रेशर एरिया बन रहे हैं वह लगातार पश्चिम दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. उड़ीसा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना को प्रभावित करते हुए यह दक्षिण में मध्य प्रदेश गुजरात और दक्षिणी राजस्थान की तरफ चले जा रहे हैं जिसकी वजह से उन राज्यों में मूसलाधार बारिश हो रही है.

जब लो प्रेशर एरिया लगातार बनते हैं तब एक्सेस ऑफ मानसून ट्रफ उत्तर भारत में नहीं पहुंच पा रहा है. यही वजह है कि दिल्ली , हरियाणा,  पंजाब में कुछ वक्त के लिए बारिश होती है और फिर धूप और गर्मी रहती है. 

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