Delhi Jal Board: दिल्ली सरकार का दावा है कि 2025 तक यमुना नदी पूरी तरह साफ हो जायेगी. अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये दिल्ली सरकार ने ओखला में 16 एमजीडी सीवर ट्रीटमेंट प्लांट में केमिकल के जरिए पानी को ट्रीट करने की पहल की है. इस अनोखी तकनीक की मदद से ओखला एसटीपी में सीवर के पानी का बेहतर तरीके से ट्रीटमेंट किया जा रहा है. यही वजह है कि ओखला एसटीपी में पानी की गुणवत्ता में 82 फीसदी सुधार हुआ है. 


जल मंत्री सत्येंद्र जैन ने बताया कि ओखला एसटीपी में पानी को शोधित करने की पुरानी तकनीक में बदलाव किया गया है, ताकि एसटीपी से तय मानक के अनुसार पानी को शोधित किया जा सके. पहले एसटीपी को अपग्रेड करने के लिए ज्यादा जगह की आवश्यकता होती थी, ऐसे में पेड़ों की कटाई से लेकर बड़ी मशीनरी सहित पूरी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था. लेकिन अब केमिकल  (पॉलीएल्यूमिनियम क्लोराइड) के जरिए सीवेज वॉटर को ट्रीट करके सरकार सिविल कार्य और भारी मशीनरी खरीदने के लिए उपयोग की जाने वाली लागत को कम करने में सक्षम है. 


STP अपग्रेड के लिए कितने रुपये खर्च करती है दिल्ली सरकार ?
पहले दिल्ली सरकार को एसटीपी को अपग्रेड करने के लिए 30–40 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ते थे. अब समय की बचत के साथ-साथ सीवेज के पानी को ट्रीट करने की लागत 1 रुपये प्रति किलोलीटर से भी कम हो गई है. इसी के साथ ही केमिकल के इस्तेमाल से सीवर पानी बेहतर तरीके से शोधित किया जा रहा है. दिल्ली जल बोर्ड और थर्ड पार्टी की ऑडिट रिपोर्ट में ओखला के 16 एमजीडी एसटीपी में उपचारित अपशिष्ट पानी को लेकर सकारात्मक परिणाम देखने को मिले है. रिपोर्ट के मुताबिक आउटलेट यानी शोधित पानी में बायोलॉजिकल ऑक्सीडेशन डिमांड (बीओडी) जहां पहले 23 मिला है. वहीं, अब घटकर 4 तक पहुंच गया है.


इसके अलावा सीओडी 70 से 20 पहुंच गया है. टीएएस पहले 38 था, जो कि अब 7 तक पहुंच चुका है. ऑयल एंड गैस व पीएच जैसे अन्य मानक भी रिपोर्ट में सही मिले हैं. इस रिपोर्ट से साफ है कि लगातार सीवर के पानी की क्वालिटी में सुधार देखा गया है. यमुना में पहले की तुलना में अब बेहतर व पूरी तरह से शोधित पानी पहुंच रहा है.


क्या है बीओडी, सीओडी और टीएसएस ?
सीवर के पानी की बायोलॉजिकल ऑक्सीडेशन डिमांड (बीओडी) 300 तक होती है. गंदे पानी को शोधित कर 10 तक लाया जाता है. इसके बाद नाले में डाल दिया जाता है. सीवर के शोधित पानी में दो बातों को देखा जाता है. पहला बीओडी और दूसरा सीओडी होता है. बीओडी ऑक्सीजन की मात्रा है जो एरोबिक स्थितियों के तहत कार्बनिक पदार्थों को विघटित करते हुए बैक्टीरिया द्वारा खपत होती है. 


वहीं, सीओडी पानी में कुल कार्बनिक पदार्थों के रासायनिक ऑक्सीकरण के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा है. बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड जितनी ज्यादा होगी, पानी की ऑक्सीजन उतनी तेजी से खत्म होगी और बाकी जीवों पर उतना ही खराब असर पड़ेगा. आसपास के वातावरण पर विपरीत असर पड़ता है. पानी के संपर्क में आने से चर्म रोग होते हैं. इसके अलावा टीएसएस (TSS) भी पानी की गुणवत्ता जांचने का एक महत्वपूर्ण उपाय है. टोटल सस्पेंडेड सॉलिड (TSS) सूक्ष्म कणों का वह भाग है जो पानी में निलंबन में रहता है. यह जितना कम होगा, पानी की गुणवत्ता उतनी ही बेहतर होगी.


दिल्ली के 34 एसटीपी में इसी तकनीक से पानी होगा शोधित
दिल्ली जल बोर्ड ने दिल्ली के सभी 34 एसटीपी में केमिकल के जरिए ही सीवर पानी को शोधित करने की योजना बनाई है. वर्तमान में यमुना विहार में इस तकनीक से पानी शोधित किया जा रहा है. वहीं, रिठाला सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) और सोनिया विहार में जल्द ही यह तकनीक अपनाई जाएगी. इससे जल बोर्ड पर वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा. साथ ही प्रदूषक तत्व बीओडी और टीएसएस का स्तर भी मानक के अनुसार हो जाएगा.


सत्येंद्र जैन ने बताया कि नई तकनीक के जरिए सीवेज के पानी को ट्रीट करके बीओडी और टीएसएस के स्तर को कम से कम लेवल पर पहुंचाकर केजरीवाल सरकार ने रिकॉर्ड कायम किया है. इस उपचारित पानी का उपयोग पीने के अलावा अन्य सभी उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है. यह उपचारित पानी आगे यमुना नदी में गिरेगा, जिससे बाद में नदी की स्थिति में सुधार होगा. सत्येन्द्र जैन ने कहा कि पानी व सीवर के इंफ्रास्ट्रक्चर को विकसित करना सरकार का काम है. 


लोग टैक्स देते हैं, इस कारण इंफ्रास्ट्रक्चर पर उनका हक है. दिल्ली सरकार ने यमुना नदी को अगले तीन साल में पूरा साफ करने का लक्ष्य रखा है. इसके तहत दिल्ली के 100 फीसदी घरों को भी सीवर लाइन से जोड़ने का प्लान है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने फरवरी 2025 तक यमुना को साफ करने की जिम्मेदारी जल बोर्ड को दी है.


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