(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Shab e-Barat Date: कब है शब-ए-बारात का त्योहार? मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने बताया
Shab- e- Barat On 7 March 2023: देश भर में शब-ए-बारात का त्योहार अगले महीने 7 मार्च को मनाया जाएगा. शाबान का चांद दिखने के बाद ये एलान किया गया है.
Shab- e- Barat Will Be Celebrated On 7 March: शाबान का चांद नजर आ गया है और इसके साथ ही शब-ए-बारात का पाक त्योहार मनाने की तारीख का एलान हो गया है. देश भर में ये त्योहार 7 मार्च को मनाया जाएगा. ये एलान शिया- सुन्नी चांद कमेटियों ने किया है. मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली और मौलाना सैफ अब्बास ये जानकारी दी है.
12वें इमाम की "यौम-ए-पैदाइश" का पाक दिन
शिया मुसलमानों के 12वें इमाम मुहम्मद अल महदी की पैदाइश शाबान की 15 तारीख को हुई थी. वहीं सुन्नी मुसलमानों का मानना है कि इस दिन अल्लाह ने नूह (ईसाई धर्म में नूह) के संदूक को बाढ़ से बचाया था. ये इस्लाम धर्म मानने वालों का बड़ा और अहम त्योहार जिसे शब ए बारात या शबे बारात भी कहा जाता है.
हर साल इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक शब-ए-बारात शाबान महीने की 15वीं तारीख की रात को मनाया जाता है. इस दिन खास शब ए बारात की नमाज भी पढ़ी जाती है. ये त्योहार चांद के दिखने पर निर्भर होता है.
अल्लाह पाक की इबादत की रात
इस्लाम के मुताबिक शब-ए बारात की रात अल्लाह की पाक की इबादत की रात है. माना जाता है कि अगर इस रात सच्चे दिल से अल्लाह पाक की इबादत और उनके सामने खुद के गुनाहों की तौबा की जाए तो अल्लाह गुनाह को माफ़ कर देता है. शब-ए-बारात दो लफ्जों शब और बारात से मिलकर बना है.
शब का मतलब रात और बारात का मतलब बरी यानी बरी वाली रात से है. इबादत, दुआओं के साथ ये गुनाहों से तौबा करने की रात है. सऊदी अरब में शब-ए-बारात को “लैलतुल बराह या लैलतुन निसफे मीन शाबान” कहा जाता है. वहीं भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान,अफ़ग़ानिस्तान और नेपाल में इसे शब-ए-बारात कहा जाता है.
इस दिन खुदा से इबादत करते हुए और अपनों की कब्र पर फूल और अगरबत्ती लगाकर उन्हें याद किया जाता है. शब-ए-बारात पर मुस्लिम लोग मस्जिदों और कब्रिस्तानों में जाकर अपने पूर्वजों के लिए इबादत करते हैं. इस दिन घरों में पकवान बनाए जाते हैं और इबादत के बाद इन्हें गरीबों में बांटा जाता है.
शब-ए-बारात के त्योहार में मस्जिदों और कब्रिस्तानों में खास सजावट की जाती है. कब्रों पर चिराग जलाकर जो दुनिया को अलविदा कह गए उन अपनों के लिए मगफिरत की दुआएं की जाती हैं. इस्लाम में इसे 4 मुकद्दस रातों में से एक माना जाता है. जिसमें पहली आशूरा की रात, दूसरी शब-ए-मेराज, तीसरी शब-ए-बारात और चौथी शब-ए-कद्र की रात होती है.
पढ़ी जाती हैं मगफिरत की दुआएं
उनकी कब्र पर जाकर मगफिरत की दुआ या फ़ातिहा कब्र के अजाब से बचाने की दुआ पढ़ते हैं. यह रात रहमत की रात मानी जाती है. इस दिन अल्लाह पाक कब्र के सभी इंसानों या मुर्दों को आजाद कर देता है. ऐसे में मुस्लिम भाई इस उम्मीद में होते हैं कि वो खुद के घर आ सकते हैं इसलिए शब ए बारात की रात हलवा जैसा कुछ मीठा बनाते है.