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Birth Anniversary: देश के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे भगत सिंह

Bhagat Singh's 111th Birth Anniversary: अंग्रेजी हुकूमत को अपने अदम्य साहस से झकझोर देने वाले भगत सिंह के रग-रग में देशभक्ति और क्रांति थी.वह कहते थे -मेरे जज्बातों से इस कदर वाकिफ हैं मेरी कलम, मैं इश्क भी लिखना चाहूं तो इंकलाब लिखाता हैं.

नई दिल्ली: जिंदगी लंबी नहीं बल्कि बड़ी होनी चाहिए. यह सिर्फ एक साधारण कथन नहीं बल्कि संपूर्ण जीवन दर्शन है. इस दर्शन को जिसने भी अपनाया वो हमेशा के लिए अमर हो गया. एक ऐसे ही शख्स थे शहीद-ए-आज़म भगत सिंह. भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 में हुआ और 23 मार्च 1931 को भारत मां का यह सपूत देश के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गया. अंग्रेजी हुकूमत को अपने अदम्य साहस से झकझोर देने वाले भगत सिंह के रग-रग में देशभक्ति और क्रांति थी. वह कहते थे, ''मेरे जज्बातों से इस कदर वाकिफ हैं मेरी कलम, मैं इश्क भी लिखना चाहूं तो इंकलाब लिखाता हैं.''

पूरे परिवार के रगों में दौड़ती थी देशभक्ति

भगत सिंह का जन्म पाकिस्तान के एक सिख परिवार में हुआ. जब भगत सिंह पैदा हुए तो पिता किशन सिंह जेल में थे.उनके चाचा अजीत सिंह भी अंग्रेजी सरकार से लोहा ले रहे थे. अंग्रेजी सरकार ने अजीत सिंह पर 22 केस दर्ज किए थे. जिसके बाद उन्हें ईरान जाकर रहना पड़ा. जहां उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना की और क्रांति का अलख जलाए रखा.

दादा-दादी ने रखा भगत सिंह नाम

सरदार किशन सिंह और विद्यावती की कोख से जन्में भगत सिंह के दादा अर्जुन सिंह और दादी जयकौर ने उन्हें भाग्य वाला कह कर उनका नाम भगत सिंह रखा. बालक भगत को भाग्य वाला बच्चा इसीलिए माना गया था, क्योंकि उसके जन्म लेने के कुछ समय बाद ही, स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण लाहौर जेल में बंद उनके पिता सरदार किशन सिंह को रिहा कर दिया गया और जन्म के तीसरे दिन दोनों चाचाओं को जमानत पर छोड़ दिया गया.

Birth Anniversary: देश के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे भगत सिंह

जलियावाला बाग कांड का पड़ा असर

13 अप्रैल 1919 को बैसाखी वाले दिन रौलट एक्ट के विरोध में देशवासियों की जलियांवाला बाग में सभा हुई. अंग्रेजी हुकूमत को यह बात पसंद नहीं आई और जनरल डायर के क्रूर  और दमनकारी आदेशों के चलते निहत्थे लोगों पर अंग्रेजी सैनिकों ने ताबड़बतोड़ गोलियों की बारिश कर दी. इस अत्याचार ने देशभर में क्रांति की आग को और भड़का दिया.

12 साल के भगत सिंह पर इस सामुहिक हत्याकांड का गहरा असर पड़ा. उन्होंने जलियांवाला बाग के रक्त रंजित धरती की कसम खाई कि अंग्रेजी सरकार के खिलाफ वह आजादी का बिगुल फूंकेंगे. उन्होंने लाहौर नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना कर डाली.

परिवार वालों ने डाला शादी के लिए दबाव तो छोड़ दिया घर

एक वक्त ऐसा भी आया जब भगत सिंह पर घरवालों ने शादी के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया लेकिन उनके लिए तो आजादी ही उनकी दुल्हन थी. घरवालों के दवाब से परेशान होकर उन्होंने घर भी छोड़ दिया था. उन्होंने घर छोड़कर जाते हुए कहा, ''मेरी जिंदगी बड़े मकसद यानी जिंदगी आजादी-ए-हिन्द के लिए समर्पित कर चुका हूं इसलिए मेरी जिंदगी में आराम और दुनियावी ख्वाहिशों के लिए कोई जगह नहीं.'' जब उन्हें बाद में शादी के लिए दवाब न दिए जाने का आश्वासन मिला तो वो घर लौटे.

‘सांडर्स-वध’, दिल्ली की सेंट्रल असेम्बली पर बम फेंका

अंग्रेजी सरकार के दमनकारी नीतियों के खिलाफ पंजाब केसरी लाला लाजपत राय शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे. तभी पुलिस अधीक्षक स्कॉट और उसके साथियों ने प्रदर्शनकारियों पर लाठियां चलाई. इसमें लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हो गए और अंतत: 17 नवंबर को उनका देहांत हो गया. लाला लाजपत राय के देहांत के बाद आजादी के इस मतवाले ने पहले लाहौर में ‘सांडर्स-वध’ किया और उसके बाद दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में चंद्रशेखर आजाद और पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ बम-विस्फोट कर ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलंदी दी.

शहीद भगत सिंह ने इन सभी कार्यो के लिए वीर सावरकर के क्रांतिदल अभिनव भारत की भी सहायता ली और इसी दल से बम बनाने के गुर सीखे. वीर स्वतंत्रता सेनानी ने अपने दो अन्य साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया, जिसने अंग्रेजों के दिल में भगत सिंह के नाम का खौफ पैदा कर दिया.

भगत सिंह की गिरफ्तारी

सेंट्रल असेम्बली पर बम फेंके जाने की घटना के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने स्वतंत्रता सेनानियों की धर पकड़ शुरू कर दी. भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की गिरफ्तारी हुई. दोनों पर सेंट्रल असेम्बली में बम फेकने को लेकर केस चला. सुखदेव और राजगुरू को भी गिरफ्तार किया गया. 7 अक्टूबर 1930 को फैसला सुनाया गया कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटकाया जाए जबकि बटुकेश्वर दत्त को उम्रकैद की सजा हुई.

जल में भगत सिंह का आखिरी वक्त ऐसे बीता

Birth Anniversary: देश के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे भगत सिंह

भगत सिंह को किताब पढ़ने का शौक था. उन्होंने आखिरी वक्त में 'रिवॉल्युशनरी लेनिन' नाम की किताब मंगवाई थी. उनके वकील प्राणनाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे. भगत सिंह ने किताब के बारे में पूछा. मेहता ने किताब दी और भगत सिंह फौरन उसे पढ़ने लगे. इसके बाद मेहता ने पूछा आप देश के नाम कोई संदेश देना चाहेंगे. भगत सिंह ने कहा, ''सिर्फ़ दो संदेश है साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और 'इंक़लाब ज़िदाबाद.''

थोड़ी देर बाद भगत सिंह समेत राजगुरु और सुखदेव को फांसी देने के लिए जेल की कोठरी से बाहर लाया गया. आजादी के मतवालों ने मां भारती को प्रणाम किया और आजादी के गीत गाते हुए फंदे पर झूल गए.

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