'अक्सर लोग देशभक्तों को पागल कहते हैं'... देशभक्ति में डूबे एक क्रांतिकारी की ये लाइन आज भी याद की जाती है. जिनका नाम भगत सिंह है. अंग्रेजों की हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाने वाले भगत सिंह की आज जयंती मनाई जा रही है. भगत सिंह देश के तमाम युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं, जिन्होंने हंसते-हंसते देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. भगत सिंह वो स्वतंत्रता सेनानी हैं, जिन्होंने फांसी से ठीक पहले भी इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाकर अंग्रेजों को चुनौती देने का काम किया था. 


देश के बड़े स्वतंत्रता सेनानी और कट्टर देशभक्त भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था. भारत मां का ये वीर सपूत एक सिख परिवार में पैदा हुआ था. उनके दुनिया में आने पर अंग्रेजी हुकूमत भारत पर शासन कर रही थी. उनके पिता जेल में थे और चाचा लगातार अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ रहे थे. भगत सिंह का नाम उनके दादा और दादी ने रखा था. उन्हें भाग्य वाला बताकर ये नाम रखा गया. जैसे-जैसे भगत सिंह होश संभाल रहे थे, उनके अंदर देशभक्ति का जुनून भी जाग रहा था. 


जलियांवाला बाग से भड़की चिंगारी
अपने परिवार और आसपास क्रांतिकारियों को देखकर भगत सिंह के मन में जो देशभक्ति की चिंगारी सुलग रही थी, उसे जलियांवाला बाग कांड ने बारूद बना दिया. 13 अप्रैल 1919 को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जलियांवाला बाग में बड़ी जनसभा बुलाई गई, जिस पर जनरल डायर ने गोलियां चलवा दीं. इस नरसंहार में करीब 1200 लोगों की मौत हो गई और हजारों लोग घायल हुए. ये एक ऐसी घटना थी, जिसने पूरे हिंदुस्तान में क्रांति की नई लहर जगा दी. भगत सिंह पर भी इस घटना का काफी ज्यादा असर पड़ा. तब उनकी उम्र महज 12 साल थी. 1926 में भगत सिंह ने 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना की. ये जोश से भरे उन युवाओं का एक संगठन था, जिसने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें उखाड़ने की कसम खाई थी. 


इंकलाब जिंदाबाद का दिया नारा
भगत सिंह के सीने में अंग्रेजों के खिलाफ आग इतनी भड़क रही थी कि वो किसी भी हाल में बदला लेना चाहते थे. जब काउंसिल हाउस में सेफ्टी बिल पास किया जा रहा था तो उससे पहले भगत सिंह ने एक योजना बनाई. वो बटुकेश्वर दत्त के साथ काउंसिल हाउस गए और वहां की रेकी की. इसके बाद 8 अप्रैल 1929 को जैसे ही सेफ्टी बिल पर फैसला सुनाया जाने लगा तभी भगत सिंह ने काउंसिल हाउस के फर्श पर बम फेंक दिया. धमाका इतना तेज था कि इससे अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिल गईं. इस दौरान पूरी असेंबली में इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए गए और पर्चे भी फेंके गए. इससे पहले भगत सिंह ने राजगुरु और सुखदेव के साथ मिलकर काकोरी कांड को भी अंजाम दिया था. 


गिरफ्तारी और फांसी की सजा 
भगत सिंह के जोश और उनकी ताकत देखकर अंग्रेज खौफ में आ गए थे. बम कांड के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उनके साथ राजगुरु और सुखदेव भी पकड़े गए. हालांकि जेल में भी भगत सिंह आजादी की लड़ाई लड़ते रहे. उन्होंने भारतीय कैदियों पर हो रहे जुल्म के खिलाफ करीब 116 दिनों की भूख हड़ताल जेल से की. इसके बाद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुना दी गई. आजादी के गीत गाते हुए 23 मार्च 1931 को भारत मां के ये तीनों सबूत फांसी के फंदे पर झूल गए. 


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