नई दिल्ली:  केद्र सरकार इस साल नागरिकता संशोधन कानून लेकर आई. इस कानून में पड़ोसी देश के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान था.नागरिकता संशोधन कानून 2019 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया है. देश भर में इस कानून को लेकर विरोध हुआ. कई लोगों का कहना था कि यह कानून धर्म के आधार पर बना है जो देश के संविधान के मूल प्रस्तावना के खिलाफ है.


इस कानून को लेकर सबसे पहले शुरू हुए विरोध प्रदर्शन में दिल्ली का शाहीन बाग का इलाका था. शाहीन बाग का प्रदर्शन देखते ही देखते एंटी-सीसीए की आवाज़ बन गया था. शाहीन बाग की तर्ज पर देश और विदेश के कई अलग-अलग हिस्सों में शाहीन बाग बन गया.


शाहीन बाग के धरने की सबसे खास बात यह रही कि इस धरने का नेतृत्व महिलाएं कर रहीं थी. महिलाओं ने 100 दिनों तक CAA के विरोध का मसाल अपने हाथों में थामे रखा.


शाहीन बाग से ही प्रभावित होकर इलाहाबाद का रोशन बाग़ हो या बिहार के गया का शांति बाग हर जगह सरकार के इस कानून के खिलाफ आवाज उठने लगी. हर जगह महिलाओं ने एक साथ आवाज बुलंद किया. सबने एक स्वर में कहा-''‘बढ़े चलो, अभी तो काफ़िला-ए-इंक़लाब को आगे, बहुत आगे जाना है'' देशभर में करीब करीब 200 से ज्यादा शाहीनबाग बन गए. देश का हर हिस्सा ऐसे शाहीनबाग से आबाद हो गया.


शाहीन बाग में एंटी CAA के प्रदर्शन का जहां देश में कई लोग विरोध कर रहे थे तो वहीं कई लोग इसका समर्थन भी कर रहे थे. देखते ही देखते पिछले 100 दिनों से जारी इस धरना प्रदर्शन में कई छात्र-छात्राएं, सामाजिक कार्यकर्ता के अलावा कई राजनीतिक हस्तियों ने भी शाहीन बाग में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई और समर्थन दिया.


शाहीन बाग का प्रदर्शन 100 दिनों तक चला और इस दौरान महिलाओं की भीड़ में विविधता देखने को मिली. यहां गैर-मुस्लिम महिलाएं भी हैं, उम्रदराज़ भी और नन्हें बच्चों को गोद में लेकर आई नई मांएं भी शामिल हुई.


शाहीन बाग से शुरू हुई क्रांति से पूरे देश में हजारों शाहीन बाग बन गए और सबने एक स्वर में कहा यह क्रांति तब तक नहीं रुकेगी जब तक सरकार सीएए का काला कानून वापस नहीं ले लेती. क्योंकि अब हम धार्मिक आधार पर होने वाली राजनीति को बढ़ावा नहीं देंगे. हमारा देश अनेकता में एकता के लिए जाना जाता है और ये इलाहाबाद है, जो गंगा-जमुनी तहजीब के लिए जाना जाता है.


कैसा रहा शाहीन बाग का प्रदर्शन


कालिंदी कुंज से सरिता विहार की तरफ़ जाने वाली सड़क की दाहिनी तरफ़ महिलाओं ने अपने प्रदर्शन के लिए पंडाल लगाया. वहीं बाई तरफ़ का हिस्सा सामाजिक गतिविधियों के लिए छोड़ा हुआ था. सड़क किनारे बने बस स्टॉप को एक लाइब्रेरी में तब्दील कर दिया गया. यहां बहुत सारी किताबें रखी हुई थी. ज़्यादातर किताबें लोगों ने दान की थी. यहां लोग आते हैं और किताबें देखते हैं, पढ़ते भी. इस अस्थाई लाइब्रेरी में एक बहुत ही ख़ूबसूरत पोस्टर लगा हुआ था. इसमें एक बच्ची एक पुलिसकर्मी को संविधान पढ़ा रही थी.


बस स्टेंड पर बने लाइब्रेरी के पास ही इंडिया गेट का मॉडल बनाया गया है. सफेद रंग के बने इस इंडिया गेट के मॉडल के बीचो-बीच अमर जवान ज्योति जलाई गई. इसके आगे बढ़ने पर डिटेंशन सेंटर का मॉडल बना हुआ था. शहीद भगत सिंह, महात्मा गांधी और संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर की तसवीर लगी हुई थी. इसके बाद थोड़ा ही आगे सड़क के बीच भारत का एक बड़ा सा नक्शा लगाया गया था और लिखा था, ‘हम भारत के लोग CAA, NPR और NRC को रिजेक्ट करते हैं.''


100 दिनों तक डटे रहे प्रदर्शनकारी


शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दी गई. दिल्ली पुलिस ने उनसे कहीं और शिफ्ट होने की अपील भी की लेकिन प्रदर्शनकारी लगातार अपनी जिद्द पर अड़े रहे कि अगर सरकार एक कदम पीछे नहीं हटेगी तो वो भी एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं.