इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले से नाखुश शंकराचार्य स्वरूपानंद सुप्रीम कोर्ट जाएंगे
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा, ''कोर्ट के फैसले से जनता की भावनाएं आहत हुई हैं, इलाहाबाद कोर्ट का निर्णय जनभावनाओं के अनुरूप नहीं है. इसलिए हम इसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करेंगे.''
नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ द्वारिका के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ''क्या ज्योतिष पीठ बद्रिकाश्रम में शंकराचार्य रहते हुए जितने धार्मिक अनुष्ठान किये क्या वह अनैतिक थे?
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा, ''कोर्ट के फैसले से जनता की भावनाएं आहत हुई हैं, इलाहाबाद कोर्ट का निर्णय जनभावनाओं के अनुरूप नहीं है. इसलिए हम इसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करेंगे.''
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच से स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती और स्वामी वासुदेवानन्द को झटका लगा था. कोर्ट ने दोनों को इस पीठ का शंकराचार्य मानने से इनकार करते हुए उनका दावा खारिज कर दिया.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा था? अपने फैसले में डिवीजन बेंच ने तीन महीने में परंपरा के मुताबिक नया शंकराचार्य चुनने को कहा है. बाकी तीनों पीठो के शंकराचार्य, काशी विद्वत परिषद और भारत धर्म सभा मंडल मिलकर तय करेंगे नया शंकराचार्य. फैसले के मुताबिक तीन महीने तक यथास्थिति कायम रहेगी.
विवाद क्या है? गौरतलब है कि आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में एक उत्तरखंड के जोशीमठ की ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य की पदवी को लेकर विवाद देश की आज़ादी के समय से ही शुरू हो गया था. 1960 से यह मामला अलग- अलग अदालतों में चला. 1989 में स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के गद्दी सँभालने के बाद द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने उनके खिलाफ इलाहाबाद की अदालत में मुकदमा दाखिल किया और उन्हें हटाये जाने की मांग की. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद इलाहाबाद की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में करीब तीन साल पहले इस मामले की सुनवाई डे-टू-डे बेसिस पर शुरू हुई थी.
निचली अदालत में दोनों तरफ से करीब पौने दो सौ गवाहों को पेश किया गया था. ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य की पदवी को लेकर करीब सत्ताईस साल तक चले मुक़दमे में इलाहाबाद की जिला अदालत ने साल 2015 की पांच मई को स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के हक़ में अपना फैसला सुनाया था और 1989 से इस पीठ के शंकराचार्य के तौर पर काम कर रहे स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की पदवी को अवैध करार देते हुए उनके काम करने पर पाबंदी लगा दी थी.
इलाहाबाद जिला अदालत के सिविल जज सीनियर डिवीजन गोपाल उपाध्याय की कोर्ट ने 308 पेज के फैसले में स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की वसीयत को फर्जी करार दिया था. निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी. इस बीच शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने भी हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर मामले का निपटारा जल्द किये जाने की अपील की थी. अपनी अर्जी में उन्होंने कहा था कि उनकी उम्र बानवे साल हो गई थी, इसलिए वह चाहते हैं कि उन्हें इस मामले में जीते जी इंसाफ मिल जाए.